ऐसे हालात न करो
ऐसे हालात न करो
मिट्टी के बने इस शरीर से तुम छुआछूत न करो
इंसानियत को छोड़कर औकात की बात न करो
बेबसी और लाचारी को देखकर धर्म जात न करो
कोई अपराधी बनने को मजबूर हो ऐसे हालात न करो,
भूख से बिलखती जिंदगी को यूं ही नजरंदाज न करो
मासूम बच्चों के बाल मन में नफरत के कोई बीज न भरो
अपनी जमीर को बेचकर तुम मानवता की बात न करो
इज्जत आबरू को लूटकर पवित्रता पे सवालात न करो,
इतिहास को कुरेदकर वर्तमान के जख्मी हालात न करो
नाम और शोहरत के लिए इबारत की लकीरें पार न करो
विश्वास और अपनेपन के बदले यूं मुश्किलात न करो
मासूम उन बच्चियों की अब अस्मिता तार —तार न करो,
लोभ और लालच के लिए किसी का अहित न करो
रीति —रिवाज की आड़ में जिंदगी से खिलवाड़ न करो
दिखावे और फैशन के लिए यूं नग्नता का रूप न धरो
घर की चार दीवारी के अंदर किसी के उम्मीदों का अंत न करो,
बच्चों के हर भूलते अदब पे उदारता का रूप न धरो
जवां होती बच्चियों को हुस्न का बाजार कहकर दुखित न करो
बदले की हर सुलगती आग में तुम किसी की अनहोनी न करो
नफरत ओर दुश्मनी के लिए अब मांग और गोदी सुनी न करो,
मिट्टी के बने इस शरीर से तुम छुआछूत न करो
इंसानियत को छोड़कर औकात की बात न करो।