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Vijay Kumar

Abstract Tragedy Others

4.5  

Vijay Kumar

Abstract Tragedy Others

ऐसे हालात न करो

ऐसे हालात न करो

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301


मिट्टी के बने इस शरीर से तुम छुआछूत न करो

इंसानियत को छोड़कर औकात की बात न करो

बेबसी और लाचारी को देखकर धर्म जात न करो

कोई अपराधी बनने को मजबूर हो ऐसे हालात न करो,

   भूख से बिलखती जिंदगी को यूं ही नजरंदाज न करो

 मासूम बच्चों के बाल मन में नफरत के कोई बीज न भरो

  अपनी जमीर को बेचकर तुम मानवता की बात न करो 

 इज्जत आबरू को लूटकर पवित्रता पे सवालात न करो,

इतिहास को कुरेदकर वर्तमान के जख्मी हालात न करो

नाम और शोहरत के लिए इबारत की लकीरें पार न करो

विश्वास और अपनेपन के बदले यूं मुश्किलात न करो

मासूम उन बच्चियों की अब अस्मिता तार —तार न करो,

    लोभ और लालच के लिए किसी का अहित न करो

  रीति —रिवाज की आड़ में जिंदगी से खिलवाड़ न करो

  दिखावे और फैशन के लिए यूं नग्नता का रूप न धरो 

घर की चार दीवारी के अंदर किसी के उम्मीदों का अंत न करो,

बच्चों के हर भूलते अदब पे उदारता का रूप न धरो

जवां होती बच्चियों को हुस्न का बाजार कहकर दुखित न करो

बदले की हर सुलगती आग में तुम किसी की अनहोनी न करो

नफरत ओर दुश्मनी के लिए अब मांग और गोदी सुनी न करो,

      मिट्टी के बने इस शरीर से तुम छुआछूत न करो

      इंसानियत को छोड़कर औकात की बात न करो।



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