देखा है
देखा है
बुझे हुए उस चूल्हे पर रखे खाली पतीले को देखा है
एक निवाले के इन्तजार में माथे में उभरी कई रेखा है
उम्मीदों की आस से बच्चे का मां को निहारते देखा है
बिखरी हुई उस राख में कई खुशियों को बुझते देखा है,
बच्चों की जरूरत के लिए उसे ठंडी शीत में कांपते देखा है
मुस्कुराते हुए उस पिता को अकेले में आंसू बहाते देखा है
मुन्ने की सलामती के लिए कई दुवाओं के टीके लगाते देखा है
तपते बदन की खातिर मैंने मां को सारी रात जागते देखा है,
बुझे हुए चूल्हे पर बिखरी ठंडी राख को देखा है
उम्मीदों का दामन पकड़े तड़के खुलती आंख को देखा है
तपती हुई हर दोपहर में संघर्षों का कठीन दौर देखा है
आंसुओ से भीगे हुए कई तकियो का भोर देखा है,
दो वक्त के निवाले के लिए उसे हर अपमान पीते देखा है
सभ्य और शिक्षित समाज में इंसानियत को बिकते देखा है
खुशियों को त्यागकर बच्चों का सुखद भाविष्य संजोते देखा है
अपनी भूख को मारने के लिए उसे ढेर सारा पानी पीते देखा है,
वादा पूरा न करने पर बच्चों से आंख चुराते देखा है
एक पिता को मैंने कितनी बार मन ही मन सिसकते देखा है
आंचल फैलकर बच्चों के लिए हर खुशियां मांगते देखा है
मां को आधे निवाले के सहारे कई रात गुजारते देखा है,
कभी कुछ सूखी रोटियां मिलने पर उन्हें जश्न मनाते देखा है
कभी गम के पल में एक दूसरे को दिलासा दिलाते देखा है
बुझे हुए उस चूल्हे पर रखे खाली पतीले को देखा है
एक निवाले के इन्तजार में माथे में उभरी कई रेखा है।
