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Sakshi Yadav

Abstract Romance Tragedy

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Sakshi Yadav

Abstract Romance Tragedy

कमज़ोर रिश्ता

कमज़ोर रिश्ता

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सोचा कि आज बता ही देती हूँ तुम्हें

अब आख़िर छुपा भी कब तक पाऊँगी ना

तुम्हारे जाने के बाद जीना तो जैसे बंद सा हो गया था

पर तुम्हें लिखे बिना कैसे रह पाऊँगी ना

एक तुम्हारी ही बातें तो थी जो अक्सर मैं लिखती रहती थी

तुम्हारी मेरी playlist एक ही तो थी

जो मैं अक्सर सुनती गुनगुनाती रहती थी

तुम क्या जानोगे कि तुम्हारे जाने से कितना कुछ बदला है

वक़्त वो भी था जब दिन- रात साथ हँसकर गुज़ारी हैं

पर अब तो अक्सर शामें बिना मुस्कुराए ही ढल जाती हैं

हाँ माना ये रिश्ता खत्म करने का फैसला मेरा था

पर सच मानना, 

मैंने आज तक इसकी ओर कदम नहीं बढ़ाये

सच मानो, 

तुमने कुछ कहा हो या ना

पर आज भी सबसे पहले तुम्हारे नाम की ओर उँगली बढ़ती है

तुम्हें देखने के बाद तो ना जाने क्या हो जाता है

तुमसे दूर जाया ही नहीं जाता

और तुमसे दूर जाने के ख़्याल तो आज तलक ना आए

और देखो ना, 

रिश्ता आख़िर खत्म भी किस वजह से हो रहा है

बस इसलिए कि उस दफा तुम्हारे सामने मैंने 

अपना दिल खोल दिया

तुम्हारे साथ रहकर कभी गम का एहसास हुआ ही नहीं था

पर कई दफ़ा ज़िंदगी एक ऐसे मोड़ पर लाकर छोड़ देती है

कि सबके उपर से भरोसा उठ जाता है

उस दफ़ा, 

हर कंधा सिर रखने के लायक नहीं होता

और हर कंधे पर सिर रख लिया जाए, 

ऐसा जायज नहीं होता

और फ़िर रोया भी तो सबके सामने नहीं जाता ना

आँसू भी अपने आप बस उन्हीं के सामने आते है

जिन्हें हम सबसे ज़्यादा चाहते है

पर शायद तुमने तो कभी ये उम्मीद भी ना की होगी

कि, मेरी चाहत तुम हो

क्योंकि हमारे बीच कुछ ऐसा था ही नहीं ना

और तो और बातें भी अक्सर कुछ ऐसी होती थी

ना तुम ही कुछ बोलते थे और ना मैं ही

पर अब शायद वो बिन बताये सब जान लेना भूल चुके हो तुम

अब देखो ना, 

ये रिश्ता हमारा आख़िर किस मोड़ पर आ चुका है

और तुम्हें इसका कोई एहसास ही नहीं

वो छोटे- छोटे पल, 

जब मैं तुम साथ मिलकर छोटी- छोटी खुशियाँ ढूँढते थे

अब खुशियाँ तो शायद हैं ज़माने में

पर कोई पल ख़ुशी का अब खास नहीं होता

गर मिल भी जाए वो पल- दो- पल

हम कैसे उन्हें सँजोये, तुम्हारा साथ नहीं होता

एहसास तो हो ही चुका होगा तुम्हें

कि ये जो रिश्ते हैं अब बदलने लगे हैं

पर आख़िर रिश्तों का यू बदलना.... 

कही ना कही तो कमी रही होगी ना

कही मुझसे, कही तुमसे

जितने एहतियात से हमने वो एक- दूसरे की दिल की बातें, 

वो खत , वो गुलाब संभाले है ना

उतने एहतियात से रिश्ते नहीं संभाल पाए हम

और मैं फ़िर दोहराती हूँ-- गलती दोनों से हुई है

मैं तो आज भी यही चाहती हूँ--

कि बस एक दफ़ा उस रोज़ में वापस चली जाऊँ

जहाँ से ये सब शुरू हुआ 

और सब सही कर दूँ

शायद उलझे ये रिश्ते सुलझ जाए फिर से

पर अफ़सोस! 

वक्त जा चुका है

वो पल जा चुका है

हाँ, उस रिश्ते की गहराई को वापस तो नहीं ला सकती

पर एक बात ज़रूर सीख ली है--

" कौन बाँट सकता है भला किसी के गम को

दर्द अपना है, तो तकलीफ़ भी अपनी ही होगी "

और मैं तुम्हें जितना तब चाहती थी ना, 

आज भी उतना ही चाहती हूँ

और शायद ये चाहत कल को बढ़ जाए , पर कम नहीं होगी

क्योंकि आज भी जब तुम सामने आ जाते हो ना

तो वही हिचकिचाहट सी होती है

वो जो दिल में एक हलचल सी होती थी ना हर बार

वो आज भी होती है

तुम्हारे नाम की दुआ हर रोज़ पढ़ती हूँ आज भी

और जब भी बारे तुम्हारे कोई बात होती है

तो हर कोशिश करती हूँ, उस बात का हिस्सा होने का

तुम्हें देखने पर आज भी वही सुकून मिलता है

हाँ रिश्ता बदल गया है, पर हम नहीं

या शायद हम बदल गए, पर रिश्ता नहीं


" ये रिश्ते भी ना बड़े अजीब होते हैं ......"


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