ये ज़िन्दगी....
ये ज़िन्दगी....
चल रही है ज़िन्दगी , कट रही है ज़िन्दगी
जिस मकान में मैं रहती हूँ
वहाँ भी बस रही है ज़िन्दगी
सोचा कि क्यों न खिड़की खोल एक बार ज़ायज़ा बाहर का भी लिया जाए
हाँ दूर मेरे मकान से भी हँस रही है ज़िन्दगी
कही खेल गुड्डे-गुड़ियों का चल रहा है
कही रंग-बिरंगे बर्तनों में चाय बन रही है
कही गाड़ी को पकड़कर ज़ूम....से भगाया जाता है
कही पालने में ज़िन्दगी खुद खिलौना बनी हुई है
घुटनों के बल कही दौड़ी जा रही है
तो कही अपने ही पैरों पर खड़ी हो रही है ज़िन्दगी
कौन कहता है ज़िन्दगी का मतलब महज़ जीना होता है
यहाँ तो जी ते जी भी कही सो रही है ज़िन्दगी
कही ज़िन्दगी बनाने को ही पढ़ने जा रही है ज़िन्दगी
कही गहरी लंबी साँस ले मंज़िल को जा रही है ज़िन्दगी
मगर कुछ तो अलग है माना चल रही है ज़िन्दगी
यहाँ रो रहे है लोग वहाँ हँस रही है ज़िन्दगी
कभी 1..2..3.. पर दौड़ रही है ज़िन्दगी
कही A B C.. और अ आ इ.. को जोड़ रही है ज़िन्दगी
चल रही है ज़िन्दगी मगर थम रही है ज़िन्दगी
ज़िंदा यहाँ बहुत है मगर कम रही है ज़िन्दगी
कही अभी भी दो रोटी पर लड़ रही है ज़िन्दगी
हाँ झूठे दो निवालों पर नाक रगड़ रही है ज़िन्दगी
कौन कहता है हर जगह बस जन्नत है ज़िन्दगी
अभी मेरे यहाँ पर लानत है ऐसी ज़िन्दगी
हाँ हस्ती - खेलती है जो वो घुट रही है ज़िन्दगी
जो उम्र है खिल जाने की उसमें बुझ रही है ज़िन्दगी
तुम्हारे होटल के सामने बर्तन धो रही एक ज़िन्दगी
खिडक़ी खोल कभी तो देखा होगा,
फ्लैट तुम्हारे के सामने फ़ुटपाथ पर सो रही एक ज़िन्दगी
कहि बाबुल के आँगन को छोड़ जा रही एक ज़िन्दगी
कही अपनी ही इज़्ज़त के सौदे को अपना रही एक ज़िन्दगी
कही बल-बूते पर अपने पहचान बना रही एक ज़िन्दगी
कही कोस अपनी किस्मत को गुम होती जा रही एक ज़िन्दगी
धोखा बार-बार कही ज़िन्दगी में खा रही एक ज़िन्दगी
कही गोली सीने में खाने आगे आ रही एक ज़िन्दगी
क्यों रोती है , ज़िस्म खाक हुआ या दफ़ना दी एक ज़िन्दगी
मैं कहती हूँ कही तो ज़मीन पर एक आ गई और ज़िन्दगी।