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राजकुमार कांदु

Abstract Tragedy Inspirational

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राजकुमार कांदु

Abstract Tragedy Inspirational

पिंजरे का तोता

पिंजरे का तोता

3 mins
765


चोंच है मेरी लाल लाल

और पंख हैं मेरे हरे

आज बताता हूँ मैं तुमको

जख्म हैं कितने गहरे 

सुन्दरता ही मेरी दुश्मन

निज किस्मत पर रोता हूँ

चुप न रहूँगा आज कहूँगा

मैं पिंजरे का तोता हूँ ...


पेड़ के कोटर में ही मेरी

दुनिया से पहचान हुई

बिता बचपन हुआ बड़ा मैं

हर मुश्किल आसान हुई

स्वच्छ गगन में विचरण करता

हरियाली में सोता हूँ

चुप न रहूँगा आज कहूँगा

मैं पिंजरे का तोता हूँ ...


कलरव करता पेड़ों पर के

तरह तरह फल खाता था

पीकर ठंडा जल झरने का

फूला नहीं समाता था 

बंधू सखा सब साथ हैं मेरे

एक झुण्ड में होता हूँ

चुप न रहूँगा आज कहूँगा

मैं पिंजरे का तोता हूँ ...


छोटी सी लालच का मैंने

कीमत बड़ा चुकाया है

डाल के दाना जाल बिछा के

मुझको बड़ा फंसाया है 

लाकर कैद किया पिंजरे में

हालत पर मैं रोता हूँ

चुप न रहूँगा आज कहूँगा

मैं पिंजरे का तोता हूँ ....


कैद नहीं थे तुम फिर भी

सबने इतनी कुरबानी दी

बहनों ने सुहाग तो

लड़कों ने भी अपनी जवानी दी 

आजादी के जज्बे की मैं

कदर बड़ा ही करता हूँ

चुप न रहूँगा आज कहूँगा

मैं पिंजरे का तोता हूँ ...


जैसे तुमको जान से प्यारी

है अपनी आजादी

कैद करो ना किसी जीव को

सब चाहें आजादी

सब आजाद हों यह सोचूं मैं

जागूँ चाहे सोता हूँ

चुप न रहूँगा आज कहूँगा

मैं पिंजरे का तोता हूँ ...


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