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राजकुमार कांदु

Romance

4  

राजकुमार कांदु

Romance

आरजू

आरजू

1 min
323



ताली हवा में अकेले बजाता रहा 

याद में तेरी खुद को सताता रहा 

ना समझना था तुझको, ना समझ ही सकी

बड़ी शिद्दत से तुझको समझाता रहा 


इंतेहा हो गई अब तो लगता यही

ना मैं जानूँ गलत क्या है और क्या सही

दिल की आवाज बस मैं तो सुनता रहा 

सोच लेता हूँ बातें मैं कुछ अनकही 


तेरी आगोश में यूँ समा जाऊँ मैं 

तेरे होठों की लाली चुरा पाऊँ मैं 

धड़कनें तेरी मेरी जुगलबंदी करें 

साथ तेरे जो कुछ पल जी पाऊँ मैं 


तुम ही तुम हो दिलोदिमाग में छाई 

जब से हो तुम मेरी जिंदगी में आई 

कुछ और न चाहा इक तुम्हारे सिवा 

तुम ही हो मेरी कविता, गजल और रुबाई 


क्यूँ शमा होती इतनी भी मगरूर है

जलने को खुद ही परवाना मजबूर है

जाने क्यों उसकी किस्मत में जलना लिखा

जल कर भी तो वो महबूब से दूर है


अब फना हो भी जाऊँ तो कुछ गम नहीं

तू शमा मैं परवाने से कुछ कम नहीं 

साथ दम भर भी तेरा मुझे जो मिले

 बरसों की जिंदगानी से कुछ कम नहीं


है निगाहों को बस तेरी ही जुस्तजू

मेरे नन्हे से दिल की है ये आरजू 

दम जब निकले मेरा तू मेरे पास हो

इल्तिजा है मेरी पूरी कर आरजू 

इल्तिजा है मेरी पूरी कर आरजू।


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