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राजकुमार कांदु

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राजकुमार कांदु

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मुक्तक

मुक्तक

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इत उत क्यों तू भटक रहा जब,           

अंतस पैठे इश खोज रहा तू मंदिर मंदिर

कण कण में जगदीश 

मुझमें है वो, तुझमें है वो 

कहाँ नहीं है ये बतलाओ 

रोम रोम में वही बसा है 

पग नख ते तन शीश। 



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