देशद्रोह का काम न हो
देशद्रोह का काम न हो
थूक रहा हूँ देश जाति की, दूषित हुई सियासत पर ।
थूक रहा हूँ घर में पलती, इस जहरीली आफत पर ।
इस भारत में खूनी कुत्तों, को जब मारा जाता है ।
तब गिद्धों की नस्लों वाला, कुनबा भी थर्राता है ।
इन गिद्धों को भारत भू के, सपनों का कुछ भान नहीं ।
और सहादत शांति सुरक्षा, का बिलकुल भी ज्ञान नहीं ।
इनको तो कुत्तों की लाशों, पर चिल्लाना आता है ।
राजनीति की खातिर हद से, तक गिर जाना आता है ।
लानत देता हूँ मैं ऐसे, घर में छुपे सियारों को ।
लानत देता हूँ आतंकी, नस्लों के मक्कारों को ।
लानत है जिनको वीरों की, नहीं शहादत दिखती है ।
जिनको केवल आतंकी की, खस्ता हालत दिखती है ।
थूक रहा हूँ उन लोगों पर, जो भारत को छलते हैं ।
और सहादत तक पर कायर, रोज सियासत करते हैं ।
थूक रहा हूँ उन पर जिनको, संविधान का ज्ञान नहीं ।
जिनके मन में भारत माँ का, मान नहीं सम्मान नहीं ।
जिनका दिल इस भारत माँ का, मान नही रख सकता है ।
जिनका मन सच्चे वीरों का, ध्यान नहीं रख सकता है ।
जो वीरों के कटे सरों पर, मौन नहीं तज पाते हैं ।
और दुश्मनों की लाशों पर, आँसू खूब बहाते हैं ।
ऐसे सत्ता पर बैठे कुछ, दुश्मन अब तक जिन्दा हैं ।
वीर जवानों की रूहें इस, हालत पर शर्मिंदा हैं ।
जिनकी खातिर मिटे वहीं दुश्मन की भाषा रटते हैं ।
कैसे खुद को भारतवासी, निर्लज्जी कह सकते हैं ।
जब आतंकी आते हैं तब, उनसे लड़ना होता है ।
मगर देश के गद्दारों से, रोज निपटना होता है ।
जिन्हें भगत आजाद देश में, आतंकी दिख जाते हैं ।
उनको पाकिस्तानी दुश्मन, भाई जैसे भाते हैं ।
आज देश के सच्चे वीरों, की भाषा में कहता हूँ ।
और देश के पहरेदारों से उम्मीदें करता हूँ ।
जो सेना पर प्रश्न उठाये, उसको हक क्या जीने का ।
जिनको मतलब समझ न आता, छप्पन इंची सीने का ।
देश द्रोह जब संविधान में, सजापात्र कहलाता है ।
फिर कैसे सत्ता पर बैठा, हर कपटी बच जाता है ।
पहले आगे आकर हमको, देशद्रोह समझाओ तो ।
लिखित रूप से देशद्रोह की, परिभाषा बतलाओ तो ।
जिससे भारत में फिर कोई, देशभक्ति बदनाम न हो ।
घर में रहने वालों से फिर, देशद्रोह का काम न हो ।
सरहद पर मिटने वालों को, खुद पर होता नाज रहे ।
स्वाभिमान से और फक्र से, जिन्दा हर जाँबाज रहे ।
बहुत हुआ आतंकवाद का, महिमामण्डन बन्द करो ।
न्याय और सेना का ऐसे, करना खण्डन बन्द करो ।
कातिल का साथी भी जैसे, कातिल ही कहलाता है ।
वैसे आतंकी का प्रियतम, आतंकी हो जाता है ।
फिर उनको क्यों फाँसी देने, से घबराना मोदी जी !
जिनको नहीं पचा आतंकी, का मर जाना मोदी जी !
यदि कोई आतंकवाद की, बात करे तो फाँसी दो ।
भारत की सुचिता से कोई, घात करे तो फाँसी दो ।
नेता हो या आम नागरिक, हर मुजरिम को फाँसी दो ।
देशद्रोह सी बात करे जो, उस हाकिम को फाँसी दो ।
आतंकी का धर्म न पूछो, सीधे गोली मारो तुम ।
फिर जो प्रश्न करे उसको भी, सरेआम ललकारो तुम ।
जेल भरो सत्ता पर बैठे, आतंकी आकाओं से ।
जिससे कोई खेल न पाए, फिर शहीद के घावों से ।
अगर शहादत सस्ती लगती, अपने भी बच्चे भेजे।
सरहद पर अपने घर वाले, देशभक्त सच्चे भेजे ।
सच कहता हूँ हर शहीद का, मोल समझ तब आएगा ।
अंगेजों का भीख दिया वह, शीश तभी कट पायेगा ।