माँ की ज़ुबानी
माँ की ज़ुबानी
सुनो दोस्तों आज सुनाती हूँ, एक विचित्र कहानी,
एक साधारण सी माँ की सरल ज़ुबानी....
आज खुशियाली का दिन आया है, मन में उत्साह और उमंग छाया है,
माँ बनने का सौभाग्य लाया है, एक नए सदस्य के आने की खबर जो पाया है,
सोचती हूँ क्या नाम रखूंगी उसका, कैसे लाड़ जताऊँगी,
बेटा होगा या बेटी मैं तो सीने से उसे लगाऊँगी,
सुन, सुन मेरी जान, बात तो मैं तुझसे अब भी करती हूँ, पर फिर आँखों से भी निहारूँगी,
मुझमें तू अब भी रहती है, पर फिर बाज़ुओं में भी सजाऊंगी,
ये दुनिया बड़ी खूबसूरत लगती है, तुझको भी ये दिखलाऊँगी,
धरती माँ के आँचल में सिमटी है, इंसानियत की मिठास चखाऊँगी,
पर सुन मेरी जान, अब देर ना करना, वक़्त से आना,
और इस दुनिया में अपना स्थान, हक से पाना,
आखिरकार, फिर एक दिन वो समय आया,
जब उस नन्ही सी जान ने इस दुनिया में आने का मन बनाया,
अजीब सी उलझन थी और अजीब सी घबराहट थी,
उसको इस दुनिया में लाने की ही बस मेरी चाहत थी,
उसके आने से फ़िज़ा बड़ी सुहानी सी थी,
वो मेरा बेटा नहीं, मेरी अप्सरा प्यारी थी,
उसकी मीठी आवाज़ सुनहरी वादियों में गूँजा करती थी,
वो जब माँ कहके मुझे बड़े प्यार से बुलाया करती थी,
मेरी हथेली से भी छोटे, उसके हाथ और उंगलियाँ थी,
नाज़ुक सी वो बच्ची, मेरे इस आँगन की जान थी,
महंगे खिलौने की हैसियत नहीं थी, इसलिए मिट्टी के बर्तन से वो खेला करती थी,
जानवरों से दोस्ती कर बङे प्यार से चराया करती थी,
फिर एक दिन, वो काली घटा छाई,
कुछ खूंखार दरिंदों ने ना जाने क्यों, उस पे अपनी नज़र टिकाई,
बच्ची वो मासूम थी, दुनियादारी से नासमझ थी,
नन्ही सी जान, अफीज़ा, अभी सिर्फ ग्यारह की ही तो थी,
दूर थी वो मुझसे इतना की उसकी आवाज़ भी सुनाई ना आई थी,
उन राक्षसों के हाथों, जब उस मासूम ने अपनी जान गवाई थी,
कितना दर्द सहा होगा उसने, कितना बिलख के रोई होगी,
जब उसकी आह की आवाज़ को भी उन इंसानियत के दरिंदों ने आसानी से दबा दी होगी,
जान मेरी अब निकल गई थी, मुझको माँ कहने वाली अब इस दुनिया से चली गई थी,
खिलौने मिट्टी के वो छोड़ गई थी, बेचारी इस दुनिया से मुँह मोड़ गई थी,
क्यों लाई में उसको इस दुनिया में, इस बात पे अफसोस होता है,
इन जानवरों के संसार में, जीवन का मतलब ही कहाँ होता है,
अरे वो तो सिर्फ मासूम सी एक जान थी, धर्म, जात तो इस संसार में आने पे ही पाई थी,
ना मुस्लिम थी न हिन्दू थी, जब वो मेरे आँगन में आई थी,
दोस्तों अगर इस दुनिया में इंसानियत का महत्व ही नहीं है,
औरत तो छोड़ो, बच्चे भगवान का रूप होते हैं, ये सोचने के लिए भी वक़्त नहीं है,
तो क्यों न इस सृष्टि को ख़त्म करें,
ना किसी को जन्म दें, ना जीवन जीने की तलब करें।।
