अतिविश्वास
अतिविश्वास
ख़ूब समझाया हमने अपने आप को
ख़ूब तड़पाया हमने अपने आप को
स्वार्थ की दुनिया है, मत कर भरोसा,
मत पहन तू, अतिविश्वास के हार को
ख़ूब धोखा खाया, तूने स्वार्थी जग में,
फिर क्यों ढो रहा, रिश्तों के भार को?
हर रिश्ते में लगा, दिखावे का मख्खन,
ख़ूब देख लिया हमने मकड़जाल को
मत पहन तू, अतिविश्वास के हार को
दुनिया में क्या मित्र? क्या रिश्तेदार?
देख रहा हूं, शूलों में फंसे गुलाब को
कोई नहीं है, सगा बालाजी के अलावा,
सब लोग होते यहां दिखावे के भाया,
लोग लूट रहे, दिल के कोहिनूर हार को
बच कर रह, दिखावे के मायाजाल से,
सब काट रहे गला, भरोसे की धार से,
मत पहन तू, अतिविश्वास के हार को
हर आदमी मर रहा, घटिया विश्वास से
दिखावे के सर्प से जो बचाता खुद को
वो बनता विजय, जो देखता समदृष्टि से
वो मरु में खिलता, इस सम स्वभाव से
जो न पहनता, अतिविश्वास के हार को
वो पाता एवरेस्ट तक की मंजिल को
जो देखता हर रिश्ते को सच्चाई से,
वो रोकर न हंसकर समझता जिंदगी को
कोई न सगा, छोड़कर मेरे बालाजी को
चाह रख तू उनकी, छोड़ स्वार्थी जग को
वो ही खिलाएंगे तेरी मुरझाई जिंदगी को