कविता
कविता
जैसे ही रात का घनघोर,
अंधेरा छा रहा है,
सच कहूँ दोस्तों तो कहीं,
दिल को सुकून आ रहा है।
दिल के ज़ज़्बात दिमाग के,
साथ गुफ़्तगू कर रहे हैं,
और वहीं इन पंक्तियों में,
एक ग़ज़ब-सा सुरूर छा रहा है।
शब्दों की तानाशाही चल रही है,
लय को भी मापा जा रहा है,
कई मापदंडों पे इन शेरों को,
और इनके अक्षरों को सवारा जा रहा है।
कविता को आकार मिल रहा है,
कलम को भी करार आ रहा है,
बस इसी कोशिश में एक,
रचना का निर्माण हो रहा है।