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औरत

औरत

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औरत बर्फ नहीं,

जो पल मैं पिघल जाएगी,

स्थिर रहने की हम में प्रबलता है।


दे जितना दर्द देना है तुझे,

क्योंकि दर्द सहने की हम में क्षमता है।


चूर-चूर हुए हैं काँच की तरह,

पर भट्टी में जलकर,

आकार लेने की हम में प्रखरता है


हस्ती बनी रहेगी,

इस दुनिया के खत्म होने तक,

क्योंकि डट के खड़े रहने की हम में दृढ़ता है


औरत ही सम्मान है,

नारी है शक्ति है,

औरत ही प्रेम है भक्ति है।


औरत ही दया है मुक्ति है,

औरत ही तुमको जन्म देने वाली व्यक्ति है।

औरत ही वो संसार है जिसमें सम्पूर्ण संपन्नता है।।

और औरत ही वो समुद्र है जिसमें भरपूर विशालता है


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