वक़्त को बीतते देखा
वक़्त को बीतते देखा
वक्त को बीतते देखा,
सालों को बदलते देखा,
देखा हर रंग ज़िंदगी का मौसम को बदलते देखा।
बचपन का भी वो वक्त था,
जब गर्मियों का इंतज़ार
बड़ी, बेसब्री से किया करते थे
नानीमाँ के घर जाने को ही
समर हॉलिडे कहा करते थे।
पापा से छुप के सारे खिलोने
अटैची में छुपाया करते थे
ट्रैन के डब्बे में लेट के कभी कॉमिक्स,
कभी वॉकमैन सुना करते थे।
हिलती ट्रैन में पूरी,आलू की
सब्ज़ी खाया करते थे
भाई-बहनों के साथ
एक महिने की छुटी बिताया करते थे।
समुंदर किनारे सपनों का घर बनाया करते थे
नानीमा का रुत्फ़ज़ा, ताश के पत्ते और रातभर की अंताक्षरी से
इन गर्मीयों में भी खुशियों के हर रंग भरा करते थे।
फिर वक़्त को बीतते देखा,
सालों को बदलते देखा,
देखा हर रंग ज़िंदगी का
मौसम को बदलते देखा।
बचपन का वो वक़्त अब बीत गया था,
जवानी के रंग को जी रहे थे
गर्मियों से घभरा कर कूलर और
ए.सी. की हवा के लिए तड़प रहे थे।
हॉलिडे मनाने के लिए स्विट्जरलैंड
और मॉरिशस घूम रहे थे
दोस्तों के साथ समुंदर किनारे
वाटर स्पोर्ट्स कर रहे थे।
जीवन के इस वक़्त को भी
बड़े उत्साह से जी रहे थे
नानीमाँ का घर, ट्रैन की मस्ती,
ताश के पत्ते वाले बचपन के रंग को भी
बड़े दिल से याद कर रहे थे।
फिर वक़्त को बीतते देखा,
सालों को बदलते देखा,
देखा हर रंग ज़िंदगी का
मौसम को बदलते देखा।
सोचते हैं एक वो वक़्त भी आएगा,
जब जवानी छोड़के बुढापे को जी रहे होंगे
तब गर्मियों के इस मौसम को
बड़े अलग ढंग से जी रहे होंगे।
हॉलिडे के लिए कहीं ना जाके ये गर्मियाँ
लाल-गुलाबी रंग के पेड़ की छावँ में बिता रहे होंगे
हमराही और बच्चों के साथ उनकी गर्मियों की छुट्टी
उसी ढंग से बिता रहे होंगे।
समुंदर तब भी होगा और हम साथी का हाथ थामे
किनारे पर घूम रहे होंगे
ज़िंदगी के इस पड़ाव को भी बड़े प्यारे से जी रहे होंगे।
हाँ, वक़्त को बीतते देखा,
सालों को बदलते देखा,
देखा हर रंग ज़िंदगी का
मौसम को बदलते देखा।