STORYMIRROR

Kavita Verma

Tragedy

4  

Kavita Verma

Tragedy

आज मैं पिता न रहा

आज मैं पिता न रहा

3 mins
376


भुंसारे ही उठ कर लग गया था

दवाई के लिए लंबी लाइन में

देखा न जा रहा था

तड़पना

बबुआ का रात भर।


बुखार तो पिछले बरस भी आया था

आ जाता है जब तब

कभी मच्छर काटने से तो

कभी तेज पेट दर्द से।


कभी साइकिल के डंडे पर बिठा

कभी गोद में कंधे पर टिका

दिखा लाता है वह दवाखाने में

जिसमें डागदर बाबू को नहीं देखा कभी

कंपाउंडर ही देख दे देता है दवा


हर बार ठीक होने के बाद बबुआ 

डाल देता है गले में बांहें 

और झूल जाता है 

कहते हुए बापू 

और वह भर जाता है 

उत्ताल प्रेम और जिम्मेदारी से 


कल भी दिखाया था बबुआ को

जाने क्यों डागदर बाबू आये थे

अस्पताल में

कंपाउंडर चिल्ला कर धकिया रहा था

बीमार बच्चों को गोद में उठाये

लोगों को।


डागदर बाबू ने आला लगाया

नाम पूछ रजिस्टर में लिखा

पर्ची पर घसीटा लगा कर उसे पकड़ाया

भर्ती करने की उसकी गुहार 

नहीं पहुँची उनके कानों में 

झिड़क कर उठा दिया उसे 

दूसरे मरीज का नाम लिखते हुए। 


बेहोश बबुआ को कंधे से लगाये

वह खड़ा रहा दवाई की आस में

जो थी ही नहीं स्टॉक में

कल मिल जाएगी दवा

कल तक आंखें खोल देगा बबुआ

की आस पर वह चला आया वापस।


सूखे होंठों पर जीभ फेरता

जरूरी क्रियाओं को रोकता

खड़ा रहा वह सूनी आँखों से

सपने देखता कि आज आँखें खोल देगा बबुआ

झूलेगा उसकी गर्दन से

और वह फिर भर जाएगा पिता होने के 

गर्व से। 


पाँच घंटे बाद खाली हाथ

आंगन में खड़े वह देख रहा है

बबुआ की खुली आँखें

निढाल पड़ गई बाँहें

जो पूछ रही हैं उससे

क्यों वह आज पिता न रहा?

कविता वर्मा

*आज मैं पिता न रहा* 


भुंसारे ही उठ कर लग गया था

दवाई के लिए लंबी लाइन में

सो न सका रात भर 

बबुआ तड़पता रहा रात भर।


बुखार तो पिछले बरस भी आया था

आ जाता है जब तब

कभी मच्छर काटने से तो

कभी तेज पेट दर्द से।


 साइकिल के डंडे पर बिठा

कभी गोद में कंधे पर टिका

दिखा लाता है वह दवाखाने में

जिसमें डागदर बाबू को नहीं देखा कभी

कंपाउंडर ही देख दे देता है दवा


हर बार ठीक होने के बाद बबुआ 

डाल देता है गले में बांहें 

और झूल जाता है 

कहते हुए बापू 

और वह भर जाता है 

उत्ताल प्रेम और जिम्मेदारी से 


दिखाया कल भी था बबुआ को

जाने क्यों कल डागदर बाबू आये थे

अस्पताल में

कंपाउंडर चिल्ला कर धकिया रहा था

बीमार बच्चों को गोद में उठाये

लोगों को।


डागदर बाबू ने आला लगाया

नाम पूछ रजिस्टर में लिखा

पर्ची पर घसीटा लगा कर उसे पकड़ाया

भर्ती करने की उसकी गुहार 

नहीं पहुँची उनके कानों में 

झिड़क कर उठा दिया उसे 

दूसरे मरीज का नाम लिखते हुए। 


बेहोश बबुआ को कंधे से लगाये

वह खड़ा रहा दवाई की आस में

जो थी ही नहीं स्टॉक में

कल मिल जाएगी दवा

कल तक आंखें खोल देगा बबुआ

की आस पर वह चला आया वापस।


सूखे होंठों पर जीभ फेरता

जरूरी क्रियाओं को रोकता

खड़ा रहा वह सूनी आँखों से

सपने देखता कि आज आँखें खोल देगा बबुआ

झूलेगा उसकी गर्दन से

और वह फिर भर जाएगा पिता होने के 

गर्व से। 


पाँच घंटे बाद खाली हाथ

आंगन में खड़े वह देख रहा है

बबुआ की खुली आँखें

निढाल पड़ गई बाँहें

जो पूछ रही हैं उससे

क्यों वह आज पिता न रहा?



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy