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"निर्मूणी"@ संजीव कुमार मुर्मू

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

"निर्मूणी"@ संजीव कुमार मुर्मू

Abstract Tragedy Inspirational

आदमी आज और कल

आदमी आज और कल

3 mins
292


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


देखता अवसर अवसरवादी

सब को चबा जाता नजर 

न भाई ना भतीजा ना कोई

सिर्फ मौके की ताक में जीता


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


दिखाता कायदे कानून का भय

खूब कमाता रुपए पैसे माई बाप

कमाई करने वाले कमाई करते

जिन्हें मौका न मिले जल रहे


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


सुखा बाढ़ राहत के नाम

खूब जलवे चल रहें

साहब के घर मालपुवे उड़ा

तीन हजार रुपए के लिए

शहर के शहर बेईमान


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


शहर गांव गली कस्बे

सुना है खूब धंधा चले 

रेत मिट्टी ईट से ज्यादा

सोमरस बिक रहा 


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


इसको पी पी कर लोग

भूल जाये बाढ़ की त्रासदी

पिछले साल की तरह ही

मुआवजा राशि देने मंत्री आवेंगे


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


तलाशता अवसर अवसरवादी 

हर मौसम हर जगह पाए जातें

क्या मजाल कोई माई का लाल

इनसे कुछ कहे कह पाये


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


अवसर साधो अवसरवादी

कोयल से भी मीठे बोल

बराबर काक चेष्टा रखते

दो करिश्माई गुणों के बल


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


अवसर तलाशे संपूर्ण सेवाकाल

बेजा फायदा खूब उल्लू बनाये

नए नए पैसे के मामले जीरो

किंतु बाद में बन गए हीरो


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


अपने मतलब की बात

अपने आंखे बंद कर लेते

मतलब निकल जाता

फेरते अपनी आंखें


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


इस भोली अदा से सब परेशान

जिससे काम निकलवाना हो

बहुत परिश्रम बुद्धिमान वाकपुट

तरह तरह कह कर पटाते 


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


मानस मर्मज्ञ किंतु सामान्य 

व्यवहारिक मामले अल्पज्ञ

सारी दुनिया अवसर तलाशे

चिंता कमाई की अपरिमित


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


अफसोस कठिन जीवन

जटिल संघर्ष समीप देखनेवाले

भ्रष्टाचार के चलते पद प्रतिष्ठा

बन जाते प्रभुता पैसे से संपन्न


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


भाईचारे के मामले निष्ठुर

हर मामले चारे की तलाश

पशुओं से बदतर जीवन


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


उपनियम धारा उपधारा भय दिखा

भयदोहन अपना ऊलू सीधा करते

सरकारी कार्यालय और समाजवाद

जीते जागते उदाहरण समाजवादी


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


हर जाति वर्ग भाषाभाषी

बिना भेदभाव अवैध राशि

ना जातिवाद ना समाजवाद

भ्रष्टाचार सांप्रदायिक सौहार्द 


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


अवसरवादी निहाल मालामाल

अवसरवादी जीवन भर छोटी बाते

राम का नाम कभी नहीं भूलते


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


कथनी करनी अंतरविरोध

सारा जीवन निःशंक जीते

अंतिम समय सशंक मरते

सत्य नकार अवहेलना महंगी


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


अविश्वासन ना जीते विश्वास

अंतिम समय बहुत पछताएं

अंत भला तो सब भला


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल


अन्त समय दुखान्त हो गया

सबको मालूम ईमानदार कितने

बेचारे मन ही मन खिन्न दुःखी

पैसे बहुत पर पानी ना देनेवाला

चुपचाप कोने बैठे आंसू बहाए


निश्चयवादी प्रगतिवादी

गांधीवादी समाजवादी

सबके बीच दाद खाज

तलाशता अवसरवादी


क्या से क्या हो गया

आदमी आज और कल



निर्मुणी@संजीव कुमार मुर्मू


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