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हेमंत "हेमू"

Tragedy

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हेमंत "हेमू"

Tragedy

मै सरकारी ऑफिस हूं

मै सरकारी ऑफिस हूं

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मैं सरकारी ऑफिस हूं।
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मैं सरकारी ऑफिस हूं,
अब मैं लबालब भर गया हूं,
मेरी भी व्यथा सुनो कि लगभग मर गया हूं,
अलग-अलग विभाग से जाना व पहचाना जाता हूं,
हर जगह स्थिति एक सी है बस अलग-अलग नाम से जाना जाता हूं,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

मेरे खुलने व बंद होने का समय निर्धारित व निश्चित है,
मगर मनमाने ढंग से खोला व बन्द किया जाता हूं,
मेरे हिसाब से मुलाजिम नहीं,
मैं मुलाजिमों के हिसाब से चलाया जाता हूं,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

मेरी सीढ़ियों के ज़ीने व कोने,
मेरी खुद की दीवारें,
कत्थई व लाल हैं,
पूरी पीकदान हैं,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

यूरिन सिंक में बाढ़ है,
टॉयलेट बजबजाता है,
महज कागज़ पर सफाई का इंतजाम है,
सफाईकर्मी भी हलकान हैं,
जो मिला उसी से काम चलाता है,
कागज़ पर, वह भी टॉयलेट चमकाता है,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

फर्श पर,
फाइलों पर,
हर तरफ,
धूल ही धूल है,
आलमारी के बाहर, ऊपर व अंदर भी धूल है,
खिड़कियों की पटरियों,
सलाखों व शीशों पर भी धूल है,
खिड़कियों के टूटे शीशों की इज्जत ढकते गत्ते व अख़बार हैं,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

धूल फांकती फाइलें हैं,
टेबलों पर गज़ी फाइलें हैं,
गठरी में बंधी फाइलें हैं,
आलमारी व रैकों में बेतरतीब लगी फाइलें हैं,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

कछुवों से हारते पंखे हैं,
शोर मचाते, लार टपकाते हुए कूलर हैं,
पलके झपकाती ट्यूबलाइटें हैं,
रोशनी की पूरी जिम्मेदारी,
छोटे बल्ब के कंधों पर है,
मानव ध्वनि को दबाने वाला दबंग जनरेटर भी है,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

बाबू की धौंस, अफसर से ज्यादा है,
उसका रुतबा ही कुछ ज्यादा है,
आखिर वही फाइलों को अटकाता है,
बाबू ही फाइलों को आगे बढ़ाता है,
बाबू ही सबको कमा कर खिलाता है,
अधिकारी, बाबू की तीमारदारी में चपरासी व्यस्त रहता है,
कुछ सुविधा शुल्क चपरासी भी पाता है,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

कभी अवैध पैसों की बंदरबांट,
तो कभी पदोन्नति की प्रतिस्पर्धा में,
तू-तू, मैं-मैं से शुरू होकर मामला गोलबंदी तक जाता है,
हर कोई अपने टेबल पर फाइल अटकाता है,
तब ऑफिस में भ्रष्टाचार का वट वृक्ष सबको समझाता है,
सबके साथ अपना भी कमीशन तय कर जाता है,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

खैनी पीटी-ठोकी जाती है,
पान-गुटखा घुलाकर फाइलों पर कलम चलाई जाती है,
समय पर चाय की तलब भी पूरी की जाती है,
महिला कर्मचारियों पर छींटाकशी भी की जाती है,
कभी-कभार छेड़खानी भी हो जाती है,
दबाव डालकर अपनी बात मनवाने की कोशिश भी की जाती है,
विभागीय शिकायत से पुलिस केस तक बात जाती है,
कुछ सच्चे तो कुछ झूठे मुकदमे होते हैं,
आखिर कुछ अबला बनकर कानून का दुरुपयोग जो कर डालती हैं,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

अनगिनत अर्जियां हैं,
फरियादियों की रैलियां हैं,
चेहरे पर उनके मायूसिया है,
काम होता दिखता बहुत है,
असल में, होता कम है,
टेबल के ऊपर पंद्रह दिन का काम,
पंद्रह महीने लटकता है,
टेबल के नीचे से पंद्रह मिनट में निपटता है,
नोटों के रंग, काम होने का पैमाना तय करते हैं,
नोटों की गड्डियां, काम को पूरा करती हैं,
जो आवाज़ उठाता है,
ऑफिस का सिस्टम उसे क्रश करता है,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।

भ्रष्टाचार का अड्डा हूं,
भ्रष्टों का अड्डा हूं,
ईमानदारी का कतलगाह हूं,
ईमानदारों का यातनागृह हूं,
आते हैं भ्रष्टाचार नियंत्रण वाले,
पकड़ते हैं भ्रष्टाचार नियंत्रण वाले,
छोटी मछलियों को पकड़ते हैं,
कुछ ले-देकर बड़ी को छोड़ते हैं,
आखिर किसी सरकारी ऑफिस से ही तो आते हैं भ्रष्टाचार नियंत्रण वाले,
चश्मदीद गवाह हूं, मैं हर एक छोटे-बड़े भ्रष्टाचार का,
पर मैं सरकारी ऑफिस हूं,
मेरी गवाही नहीं चलेगी,
मैं मूक विवश हूं सब देखता हूं,
अब मैं लबालब भर गया हूं,
मेरी भी व्यथा सुनो कि लगभग मर गया हूं,
मैं सरकारी ऑफिस हूं।
                                     - "हेमू "


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