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मिली साहा

Abstract Tragedy

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मिली साहा

Abstract Tragedy

श्री कृष्ण जन्म कथा

श्री कृष्ण जन्म कथा

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द्वापर युग के अंत में बढ़ता ही जा रहा था 

पापी, निर्दयी मथुरा राजा कंस का अत्याचार

पाप का अंत और पुनः धर्म स्थापना करने को

भगवान विष्णु ने लिया धरती पर कृष्ण अवतार।


देवकी का आठवां पुत्र ही बनेगा काल तेरा

कंस के कानों में गूंजी जब ये आकाशवाणी

स्वयं की बहन देवकी को उसके पति सहित

बेड़ियों में जकड़, दिया कारावास, था वो अज्ञानी।


एक एक कर किया वध देवकी के पुत्रों का

दया न आई तनिक ममता का जब कत्ल किया

किंतु काल तो अटल, समझ सका न वो दुराचारी

पाप का त्याग न कर हर रिश्ते को उसने त्याग दिया।


भाद्रपद कृष्ण अष्टमी थी घनघोर अँधेरी रात

जन्म लेते ही कृष्ण के प्रकाशमय हुआ कारागार

बालक के स्पर्श से खुली बेड़ियाँ देवकी वासुदेव की

मूर्छित हो गए द्वारपाल सारे, खुल गये स्वयं ही द्वार। 


कंस से रक्षा हेतु आठवें पुत्र कृष्ण को लेकर

पिता वासुदेव चले मथुरा से दूर गोकुल की ओर

वर्षा से बढ़ा जलस्तर देखकर, जब घबराए वासुदेव

तभी कृष्ण ने चरण स्पर्श से शांत किया यमुना का शोर।


मुस्काए मुरली मनोहर देख शेषनाग की छाया

जहाँ मुरारी वहाँ संकट कैसा पहुँचे नंद की नगरी

कान्हा को सौंप यशोदा को, कन्या को ले वापस आए

ज्यों का त्यों हो गया कारागार, सजग हो गए सभी पहरी।


कंस को जा सूचना दी बालिका ने जन्म लिया

अचंभित हुआ कंस, दौड़ कर कारागार वो आया

झूठी थी आकाशवाणी ये बालिका क्या मुझको मारेगी

पर जोखिम न लूंगा तनिक, आज इसकी भी बलि चढ़ेगी।


अंत करने की मंशा, छीन अबोध को देवकी से 

जैसे ही चाहा पटकना , वो तो समा गई आकाश में

अगले ही पल, प्रकाश के साथ हुई एक आकाशवाणी

तेरा काल तो आ चुका है, झूठी नहीं थी वो भविष्यवाणी।


सुन कंस घबराया, मन में काल का डर समाया

उधर गोकुल में कृष्ण अपनी सुंदर लीला में रामाया

श्याम वर्ण, नयन कमल और अद्भुत मोहनी सूरत

गोपियांँ भी देख मोहित हो जाए, कान्हा की प्यारी मूरत।


गोकुल के ग्वाल कन्हैया, मुरली मनोहर, कान्हा

तारणहार रचाए लीला, गोकुल के प्यारे वो कृष्णा

धन्य हुए गोकुल वासी, धन्य हुई धरा गोकुलधाम की

जहाँ वाणी गूंजी, मोर मुकुट धारी, मनमोहन श्याम की।


नंद का प्यारा वो यशोदा की आँखों का तारा

नटखट कान्हा के रंग में रंग गया गोकुलधाम सारा

मटकी फोड़े गोपियों की, बालसखा संग माखन चुराए

कन्हैया की देख अनोखी लीला, नंद यशोदा भी मुस्कुराए।


बाल रूप में ही कान्हा ने लीलाएँ रचाई अद्भुत

पूतना राक्षसी का वध किया, कंस की खोई सुधबुध

कर कालिया मर्दन कृष्ण ने विष मुक्त किया यमुना को

राक्षसों का वध कर विफल किया कंस की हर योजना को।


लीलाधर की लीला देख, वो कंस बड़ा घबराया

भेजकर निमंत्रण, स्वयं कान्हा को मथुरा बुलवाया

अपने ही काल का किया आमंत्रण, मूर्ख वो अभिमानी 

भगवान कृष्ण की है मर्जी इसमें, समझ सका ना अज्ञानी।


श्री कृष्ण ने मुक्त करवाया मथुरा को अत्याचार से 

मृत्यु को पाया कंस ने, स्वयं अपने पापी व्यवहार से

देवकी वासुदेव मुक्त हुए, चहुंँओर कृष्ण जय जय कार

जब जब पाप बढ़ेगा धरा पर आएंगे कृष्ण बन तारणहार।



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