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Vijay Kumar

Tragedy Others

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Vijay Kumar

Tragedy Others

रोटियां

रोटियां

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भूख से बिलखते रहे बच्चे खाने को न मिली रोटियां

भरा जो पेट तो कभी कूड़े कभी कचरे में चली रोटियां

किसी ने पसीने से सींच कर खाई है रोटियां 

तो किसी ने हकों को मारकर पाई है रोटियां, 


       कही जिंदगी गुजर गई खाकर सुखी रोटियां 

      कही फुटपाथ पे सिमट गई भूखी जिंदगियां  

 कही दिन भर की भागदौड़ भी न दिला पाई रोटियां 

  तो कही खुशियों के सरगम में फेंक दी गई रोटियां, 


किसी की नींद भी दूर थी कमाने को रोटियां 

किसी ने एहसान के नाम पर बांट दी रोटियां 

कहीं कोई हाथ फैला रहा था पाने को रोटियां 

कहीं कोई तरकीब निकाल रहा था छीनने को रोटियां, 


        किसी ने गोलियां चला दी पाने को रोटियां 

      तो किसी ने बोलियां लगा दी देने को रोटियां 

    कही खुशियों का सरगम था पाकर कुछ रोटियां 

      कही कोई बदन नोच रहा था देने को रोटियां, 


कहीं इंसानियत गिर रही थीं पाने को रोटियां 

कहीं कोई भूखा तरस रहा था खाने को रोटियां 

भूख से बिलखते रहे बच्चे खाने को न मिली रोटियां

भरा जो पेट तो कभी कूड़े कभी कचरे में चली रोटियां।



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