"वो खिलौने वाला"
"वो खिलौने वाला"
देहरी से भी लौट गया वो खिलौने वाला
जब घर में न मिला उसे कोई खरीदने वाला
मेंले की रौनक में भी न बिका इस बार कोई चिमटा
गलियों में दौड़ता वो बचपन अब मोबइल में सिमटा,
न वो चोर सिपाही न कही कागज की कस्ती
चार दिवारी में कैद हो गई वो बचपन की मस्ती
न अब परिवार में एकता न दादा दादी की कहानी
फॉलोअर्स और लाइक की हुई अब दुनियां दीवानी,
अब न रहा आपस में प्यार और रिश्तों में विश्वास
इंटरनेट की दुनियां से आता हर कोई दिल के पास
न गलियों में बच्चों की खिलखिलाहट न बड़ो का मान सम्मान
परवरिश और संस्कारों की कमी से बढ़ता नारी का अपमान,
न कही बगीचे में घुसते बच्चे न मिट्टी से होता कपड़ा गंदा
नन्हें नन्हें कदमों पर बढ़ते बस्तों के बोझ से झुकता कंधा
न पेड़ो की छांव में कोई झूला न बारिश के खेल में भीगता तन
मोबाइल स्क्रीन पर उससे बतियाने के लिए व्याकुल होता मन,
न भक्तिमय संगीत से खुलती आंखे न चिड़ियों का होता शोर
मेल जोल के बजाए मोबाइल इंटरनेट से निभते रिश्तों पर जोर
चेहरे पर न रौनक कोई न त्योहारों में खुशियों का सजता द्वार
कम होती सहनशक्ति और बात बात पर हिंसक होता व्यवहार,
न अब कोई कबड्डी न खो –खो न वो खेल न वो तमाशे
खोखले होते रिश्तों को बचाने के लिए झूठे देते दिलासे
न नुक्कड़ पे दोस्तों का इंतजार न बचपन का कोई प्यार
दिखावे और शान शौकत में सिमटता बच्चों का संसार,
न बचपन की वो मासूमियत न खाने को कोई निवाला
कूड़े कचरे के ढेर में बाल मजदूरी से जीवन होता काला
देहरी से भी लौट गया वो खिलौने वाला
जब घर में न मिला उसे कोई खरीदने वाला।