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Vijay Kumar

Others

4  

Vijay Kumar

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"वो खिलौने वाला"

"वो खिलौने वाला"

2 mins
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देहरी से भी लौट गया वो खिलौने वाला

जब घर में न मिला उसे कोई खरीदने वाला

मेंले की रौनक में भी न बिका इस बार कोई चिमटा

गलियों में दौड़ता वो बचपन अब मोबइल में सिमटा,


        न वो चोर सिपाही न कही कागज की कस्ती

       चार दिवारी में कैद हो गई वो बचपन की मस्ती

    न अब परिवार में एकता न दादा दादी की कहानी    

फॉलोअर्स और लाइक की हुई अब दुनियां दीवानी,


अब न रहा आपस में प्यार और रिश्तों में विश्वास

इंटरनेट की दुनियां से आता हर कोई दिल के पास

न गलियों में बच्चों की खिलखिलाहट न बड़ो का मान सम्मान

परवरिश और संस्कारों की कमी से बढ़ता नारी का अपमान,


           न कही बगीचे में घुसते बच्चे न मिट्टी से होता कपड़ा गंदा

            नन्हें नन्हें कदमों पर बढ़ते बस्तों के बोझ से झुकता कंधा

           न पेड़ो की छांव में कोई झूला न बारिश के खेल में भीगता तन 

            मोबाइल स्क्रीन पर उससे बतियाने के लिए व्याकुल होता मन,


            न भक्तिमय संगीत से खुलती आंखे न चिड़ियों का होता शोर

           मेल जोल के बजाए मोबाइल इंटरनेट से निभते रिश्तों पर जोर 

            चेहरे पर न रौनक कोई न त्योहारों में खुशियों का सजता द्वार

        कम होती सहनशक्ति और बात बात पर हिंसक होता व्यवहार,


            न अब कोई कबड्डी न खो –खो न वो खेल न वो तमाशे

            खोखले होते रिश्तों को बचाने के लिए झूठे देते दिलासे

         न नुक्कड़ पे दोस्तों का इंतजार न बचपन का कोई प्यार

         दिखावे और शान शौकत में सिमटता बच्चों का संसार,


न बचपन की वो मासूमियत न खाने को कोई निवाला

कूड़े कचरे के ढेर में बाल मजदूरी से जीवन होता काला 

देहरी से भी लौट गया वो खिलौने वाला

जब घर में न मिला उसे कोई खरीदने वाला।



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