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Vijay Kumar

Abstract Tragedy Others

4.5  

Vijay Kumar

Abstract Tragedy Others

याद आता है

याद आता है

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आज हर गुजरते वक़्त के साथ

बीता हुआ वो कल याद आता है

जिम्मेदारियों से भरी इस दौड़ में

न लौटने वाला वो बचपन याद आता है,

          बढ़ते उम्र के साथ अपनी नादानियों का

               अब न कोई ढाल नजर आता है

               बचपन की हर एक शरारत पर

         माँ के आँचल में छुप जाना याद आता है,

जीवन में आती हर मुसीबत पर

सलाह देने वालों का अंबार लग जाता है

तब सलाह - सुझाव के साथ - साथ

हर कदम पर पापा का साथ देना याद आता है,

               आज जितना भी पैसा कमाओ

                   कुछ कम सा ही लगता है

            तब हर खुशियों के लिए जोड़ा गया

           गुल्लक का वो खजाना याद आता है,

अब कोई खुशी हो या ग़म

अपनेपन का आभाव नजर आता है

बचपन में लगी एक चोट पर

पूरे मोहल्ले का सहलाना याद आता है,

            भावनाओं, जज्बातों और रिश्तों से

        हर कोई मतलब निकालता नजर आता है

            बेफिक्र, बेख्याल और बेमतलब का

              वो बचपन का दौर याद आता है,

आज हर गुजरते वक़्त के साथ

बीता हुआ वो कल याद आता है

जिम्मेदारियों से भरी इस दौड़ में

न लौटने वाला वो बचपन याद आता है।



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