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Dr.Shilpi Srivastava

Abstract

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Dr.Shilpi Srivastava

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वक़्त

वक़्त

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इस वक़्त का भी यारों,

अपना ही तराना है,

सुख में तो गुज़र जाए,

पर दुःख में बिताना है;


        खुशियों के दिनों में तो,

        पंखों से लदा होता,

       उड़ता ही चला जाता,

        परवाह नहीं करता;


रोके से न रुकता है,

जाना है तो जाना है,

सुख में तो गुज़र जाए,

पर दुःख में बिताना है;


        हिम्मत भी यही देता,

        ताक़त भी यही देता,

        सीने में लगे घाव का,

        मरहम भी यही होता 


हर एक वक़्त का यूँ

अपना ही फ़साना है

सुख में तो गुज़र जाए,

पर दुःख में बिताना है।


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