बचपन
बचपन
इस जग में सब कुछ बिकता है,यहाँ रिश्ते भी अनमोल नहीं,
पर बचपन तो बचपन ही है,जहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं;
अपनी बातें ही सच लगती,सपनों के महल बनाते हैं,
राजा-रानी का खेल सही,खुद राजा तो बन जाते हैं!
छोटी सी इनकी दुनिया में,ऊँचे-नीचे का भेद नहीं,
यह बचपन तो बचपन ही है,जहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं;
पल में कटुता-पल में मैत्री,लड़ना-भिड़ना तो खेल लगे,
अपने ही प्यारे मित्र के सिर,गलती मढने में ना देर लगे;
पर ज्यों ही गुस्सा शांत हुआ,मित्रता भाव में देर नहीं,
यह बचपन तो बचपन ही है,यहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं;
पर कुछ बचपन ऐसे भी हैं,जहाँ 'बचपन' खुद पर रोता है,
घर की रोटी के जुगाड़ में,वह ईंटा-पत्थर ढोता है;
उनको भी छोटी खुशियों में,खुश होने में परहेज नहीं,
वह बचपन भी बचपन ही है,जहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं ।