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Dr.Shilpi Srivastava

Abstract

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Dr.Shilpi Srivastava

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बचपन

बचपन

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इस जग में सब कुछ बिकता है,यहाँ रिश्ते भी अनमोल नहीं,

पर बचपन तो बचपन ही है,जहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं;


अपनी बातें ही सच लगती,सपनों के महल बनाते हैं,

राजा-रानी का खेल सही,खुद राजा तो बन जाते हैं!

छोटी सी इनकी दुनिया में,ऊँचे-नीचे का भेद नहीं,

यह बचपन तो बचपन ही है,जहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं;


पल में कटुता-पल में मैत्री,लड़ना-भिड़ना तो खेल लगे,

अपने ही प्यारे मित्र के सिर,गलती मढने में ना देर लगे;

पर ज्यों ही गुस्सा शांत हुआ,मित्रता भाव में देर नहीं,

यह बचपन तो बचपन ही है,यहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं;


पर कुछ बचपन ऐसे भी हैं,जहाँ 'बचपन' खुद पर रोता है,

घर की रोटी के जुगाड़ में,वह ईंटा-पत्थर ढोता है;

उनको भी छोटी खुशियों में,खुश होने में परहेज नहीं,

वह बचपन भी बचपन ही है,जहाँ खुशियों का कोई मोल नहीं ।

          


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