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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"अफवाह-बाजार"

"अफवाह-बाजार"

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अफ़वाहों के बाजार, बड़े गरम है झूठ को सत्य न हो रहा, हजम है


घर पर भी, जो शीतल शबनम है

उसको दिये जा रहे, बहुत गम है


जो कर रहे, जग में सत्य करम है

उनके बारे में फैला रहे, भरम है


उनको लोग कहते बदनाम, कलम है

जिनके कर्म में कुछ तो, साखी दम है


अफवाहों का बाज़ार, बड़े गरम है

आज रोशनी को मिटा रहे, तम है


आईने दिखा रहे, सही सूरत कम है

मनु रूप धरे भेड़िये, कदम-कदम है


लोग चाहे खूब रोके दीप, कदम है

सत्य की रोशनी होती, अनुपम है


एक दीप से न मिटे, चाहे पूरी शब है

जहां भी हो, वहां का मिटाता तम है


अफवाह बाजार कितना हो गरम है

पर नेकी, ईमानदारी जिनका धरम है


जिनके भीतर सत्य का आगमन है

वो मिटा देते, हर अफवाह गरम है


वो फूल ही दे देते है, अक्सर जख्म है

जो बाहर से अच्छे, भीतर रखते, छद्म है


जो अच्छाई करना न छोड़ते, श्रम है

उनके आगे हर बुराई, निकलता दम है


जो हृदय से करते, निःस्वार्थ करम है

ईश्वर देता नहीं उन्हें, दुबारा जन्म है


वे अफवाह-कीचड़ में बनते, कमल है

जिनका दिल होता पावन, गंगाजल है



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