सर्पदंश
सर्पदंश
एक बेबस
लाचार पुरुष की कमजोरी
कहीं बेपर्दा ना हो जाये
इसलिए वो उर्वरा
सहती रही
बाँझ के ताने
अपनी सास ननद से,
पर
आज टूट गया
वो बाँध सब्र का।
मिट्टी के शरीर की भूख
लील गयी इंसानी रिश्तों को
और
नग्न ऊष्ण शरीर
हो ऊर्जस्वित
निषिध इच्छापूर्ति कर
पा गया
गौतम का अहिल्या को श्राप।
जिसे
ना वो नकार सकती है
और ना ही
पुरुष स्वीकार कर सकता है
इसी सर्पदंश को
झेल रहे हैं दोनों।