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Vinod Kumar Mishra

Classics

3  

Vinod Kumar Mishra

Classics

पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

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दो दूर देश के पंछी चलकर

उर से उर में समाहित होते हैं

अंजाने वह बेगाने पथ पर

अपनी संस्कृति गाते बढ़ते हैं।


ईश्वर की दो अनुपम रचना

सामाजिक बंधन में बँधते हैं

दोनों साक्षी अग्नि देव के सम्मुख

सप्तपदी की महिमा गाते हैं।


समर्पित कर तन मन दूजे में

पाणिग्रहण संस्कार निभाते हैं

वर-कन्या पक्ष खुशी से पंडित

मंगल गीत झूमकर गाते हैं।


फिर आजीवन सुख-दुःख के साथी

पति-पत्नी दोउ कदम बढ़ाते हैं

'वीनू' अपने संस्कृति की महिमा

जनम-जनम तक सुर-नर गाते हैं।


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