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Vinod Kumar Mishra

Abstract

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Vinod Kumar Mishra

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गाढ़ी कमाई मेहनत की

गाढ़ी कमाई मेहनत की

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कुछ जाल बिछाकर बैठे हैं अब

कुछ उसमें फँसने को आतुर हैं

कुछ चकाचौंध से सजा दुआरा

धन लोलुपता मन में रखते हैं।


किसी तरह से मीठे ख्वाब दिखा

बच्चों के अभिभावक को ठगते हैं

जिसके छद्म मकड़जाल में फँसकर

अभिभावक इस कदर तड़पते हैं।


गाढ़ी कमाई मेहनत की फिर

उनकी जाल में भरते रहते हैं

ज्यों-ज्यों बचपन वह बढ़ता जाता

ढोंगी फीस बढ़ाते रहते हैं।


सिसक उठा अभिभावक बेचारा

बच्चे गुलछर्रे धुआं उड़ाते हैं

जब तक समझ सके उस ढोंगी को

तब तक देर बहुत कर जाते हैं।


संस्कारहीन शिक्षा से बच्चे तब

वृद्धाश्रम की राह दिखाते हैं

वहीं बच्चे सरकारी विद्यालय के

नि:शुल्क पढ़ाई करते बढ़ते हैं।


जीवन कौशल विकसित कर अपना

सुयोग्य नागरिक बनते रहते हैं

चौदह वर्ष की उम्र तक बच्चे सब

बेहतर शिक्षा-सुविधा पाते हैं।


सावधान होकर जो अभिभावक

पहले विद्यालय को परखते हैं

उनके बच्चे राष्ट्रीय विकास में

अपना जीवन मूल्य समझते हैं।


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