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Upendra Pratap SIngh

Classics

3  

Upendra Pratap SIngh

Classics

माँ के नाम गीत

माँ के नाम गीत

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197


नन्हे से हाथ थे छोटी सी उंगलियां 

होश जिस दिन से मैंने संभाला है माँ |

ज्यों ह्रदय पालता है किसी स्वप्न को

उस तरह से तूने मुझको पाला है माँ ||


अपने पैरों पे चलना सिखाया तूने |

क्या सही क्या गलत ये बताया तूने |

जग ने तो सिर्फ सिखलाई चालाकियां

मुझको इंसान सच्चा बनाया तूने |


तूने पुचकार कर जो खिलाया कभी

स्वाद सबसे तेरा वो निवाला है माँ ||


तू कौशल्या सी है मैं तेरे राम सा |

तू यशोदा सी पावन मैं घनश्याम सा |

ले प्रतिज्ञा कठिन जो भगीरथ ने की

उस तपस्या सी तू, मैं हूँ परिणाम सा |


दूध का क़र्ज़ कोई चूका न सका

चाहे रघुवर हो या बंसीवाला हो माँ ||


ब्रह्म जैसे सृजन तूने मेरा किआ |

रूप ले विष्णु का तूने पाला मुझे |

जब भटकने लगा मैं गलत राह पर

रूद्र का रूप धर कर संभाला मुझे |


सबका होगा खुदा किन्तु मेरे लिए

तू ही मंदिर अउ तू ही शिवाला है माँ ||


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