श्रीमद्भागवत -११७; यम और यमदूतों का संवाद
श्रीमद्भागवत -११७; यम और यमदूतों का संवाद
राजा परीक्षित ने पूछा भगवन
सारे जीव तो धर्मराज के वश में
फिर दूतों को अपमानित कर उनकी
आज्ञा क्यों भंग की हरि के पार्षदों ने।
जब दूतों ने यमपुरी जाकर
यमराज को वृतांत सुनाया अजामिल का
तब भगवान यमराज ने
उन दूतों से क्या था कहा।
ऋषिवर पहले कभी ना सुना
किसी ने किसी भी कारण
धर्मराज के शासन का
किसी तरह किया हो उलंघन।
इस विषय में संदेह होता है
आप इसका कीजिये निवारण
शुकदेव जी कहें फिर यमदूतों ने
यमराज के पास जा किया निवेदन।
प्रभो संसार के जीव जो हैं ये
कर्म करत्ते हैं तीन प्रकार के
पाप, पुण्य अथवा दोनों से मिश्रित
जो इनको दण्ड दें वो शासक कितने ?
यदि दंड देने वाले शासक
संसार में बहुत सारे हों
किसे सुख मिले, किसे दुःख मिले
व्यवस्था इसकी फिर एक सी न हो।
इसलिए हम तो ऐसा समझते
अकेले आप ही अधीश्वर हैं
समस्त पापियों और उनके स्वामियों के
दंडदाता और शासक हैं।
आप पाप पुण्यों के निर्णायक
आप के द्वारा नियत हुए दंड की
अब तक संसार में कहीं भी
अवहेलना नहीं हुई थी।
उल्लंघन किया है आपकी आज्ञा का
परन्तु चार अद्भुत सिद्धों ने
पापी को एक हम ले जा रहे थे
बलपूर्वक छुड़ा लिया उन्होंने हमसे।
इस सब का रहस्य क्या है
हम आपसे जानना चाहें
यदि आप हमें ये सुनने का
अधिकारी समझें तो कहें।
बड़े ही आश्चर्य की बात है
नारायण शब्द निकला ही था जो
इधर अजामिल के मुँह से जब
झटपट पहुँच गए वहां वो।
शुकदेव जी कहें जब यमदूतों ने
इस प्रकार प्रश्न किया था
यमराज ने प्रसन्न हो हरि के
चरणकमलों का स्मरण किया था।
यमराज ने कहा, हे दूतों
स्वामी इस चराचर जगत के
मेरे अतरिक्त एक और भी
ओत प्रोत ये जगत उन्हीं में।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव उन्हीं के द्वारा
उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय जगत की करें
कर्मबन्धन में बंधे जीव सब
उन्हें ही सर्वस्व भेंट कर रहे।
मैं, इंद्र, वरुण, चन्द्रमा
शंकर, वायु, सूर्य, अग्नि
ब्रह्मा, वसु, सिद्ध, प्रजापति, देवता
माया के आधीन हैं उनकी।
भगवान, कब, क्या किस रूप में
करना चाहते हैं, इस बात को
हम में से भी कोई न जनता
बात ही क्या फिर दूसरों की तो।
वे प्रभु हैं सबके स्वामी
और स्वयं परम स्वतंत्र हैं
उनके दूत भी परम मनोहर
इस लोक में विचरण किया करते हैं।
दर्शन भी बड़ा दुर्लभ है
उन पार्षदों का विष्णु भगवान के
हरि के भक्तजनों को सुरक्षित रखें वो
मुझसे, अग्नि आदि सब विपतिओं से।
स्वयं भगवान ने निर्माण किया
है धर्म की मर्यादा का
उसे न ही ऋषि जानते
ना सिद्धगण, ना देवता।
ऐसी स्थिति में कैसे जान सकें
मनुष्य, विद्याधर, असुर आदि उसे
भगवान के द्वारा निर्मित भागवतधर्म
परमशुद्ध, अत्यंत गोपनीय ये।
उसे जानना बहुत कठिन है
और जो उसे जान लेता है
भगवान के भागवत स्वरुप को
वो प्राप्त हो जाता है।
दूतों, भागवत धर्म का रहस्य जानें
ब्रह्मा, नारद, शंकर, कपिल मुनि
सनत्कुमार, मनु, मैं, प्रह्लाद और
जनक, भीषम, बलि, शुकदेव जी।
इस जगत में जीने के लिए बस
सबसे बड़ा परमधर्म है यही
भक्तिभाव प्राप्त करें भगवन का
कीर्तन से, उनके चरणों में ही।
प्रिय दूतों, भगवान के नाम के
उच्चारण की देखो महिमा
अजामिल जैसा पापी भी इससे
मृत्युपाश से छुटकारा पा गया।
पाप तो क्षीण हो ही गए उसके
मुक्ति की भी प्राप्ति हो गयी
बुद्धिमान पुरुष ऐसा विचार कर
भक्ति करें भगवान अनंत की।
मेरे दण्ड के पात्र न वो
पाप तो वो करते ही नहीं
भगवान नाम नष्ट कर देता
अगर पाप कोई हो जाये भी।
भगवान की गदा सदा रक्षा करें
उनके पास न जाना भूलकर भी
उन्हें दण्ड देने की सामर्थ्य
न हममें है, न काल में ही।
भगवान के गुणों और नामों का
उच्चारण न करते हैं जीव जो
सिर कृष्ण के चरणों में न झुकता
उन पापियों को मेरे पास लाया करो।
भगवान के पार्षदों का तिरस्कार
किया है आज मेरे दूतों ने
यह मेरा ही अपराध है
भगवान नारायण मुझे क्षमा करें।
शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित
प्रायश्चित बड़े से बड़े पाप का
यही है के कीर्तन किया जाये
भगवान के गुणों और नामों का।
इसी से संसार का कल्याण हो सकता
श्रवण कीर्तन जब करते मन से
हृदय में भक्ति का उदय हो
शुद्ध हो जाती आत्मा इससे।
हे परीक्षित जब यमदूतों ने सुना
मुख से ये स्वामी धर्मराज के
भगवान की ऐसी अद्भुत महिमा
आनंद मिला स्मरण उनका करके।
तब से वो कभी पास न जाएं
भगवान के आश्रित भक्तों के
और उनकी और वो सब
आँख उठाकर भी नहीं देखते।
हे परीक्षित, मलयपर्वत पर
विराजमान भगवान अगस्त्य ने
इतिहास यह परम गोपनीय, रहस्यमय
सुनाया मुझे, हरि पूजा करते समय।