कर्ण की वीर-गाथा
कर्ण की वीर-गाथा
कहानी सुनाता हूँ एक वीर योद्धा की
वो युद्ध था जहां जीत होने वाली थी सत्य की
कभी न हुआ ऐसा युद्ध होने वाला था
वहीं समय सारे राज खोलने वाला था
जन्म लिया था वहा जहासे जिंदगी बदल ने वाली थी उसकी
पिता भी महान और पुत्र भी महान; गाथा थी ऐसी उन दोनों की
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कुंती माता ने सूर्य देव से एक तेजस्वी बालक प्राप्त कर लिया
समय ने सारी बातों को जुठ से सच मे तब्दील कर दिया
दुनिया क्या कहेगी ऐसा सोचकर बालक को नदी में छोड़ दिया
रुला रुला कर समय ने उस बात को रहस्य में परिवर्तित कर दिया
वहा से हुई जिंदगी की आगे बढ़ने की शुरुआत
सारथी को मिला वो बालक अब बोलो उसकी कौनसी जात ?
सूतपुत्र कहकर लोगों ने ऐसी हालत करदी अब क्या करूँ बात
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क्यूँ ?आया हूं में यहा ऐसा सोचकर रोने लगा था
मेरी माँ और पिता कौन है? हर पल ढूढ़ने लगा था
घर से बाहर निकल कर माँ और पिताजी की खोज शुरू करदी
एक दिन मिले पिता तो उन्होंनें उसकी खोज ही पूरी कर दी
मिल गए पिता पर माता को देखना चाहता था
सूर्यदेव ने खोले सारे राज फिर भी वो उदास हुआ करता था
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बड़ा हुआ था इसीलिए शिक्षा लेनी थी उसे
दानवीर कहकर लोग पुकारने लगे थे उसे
कोई भी आजाये उसके सामने तो दे देता था दान
पिता तो थे ही महान अब पुत्र भी बन गया महान
शिक्षा लेने के लिए गया था गुरु परशुरामजी के पास
डर तो अब कैसा जब खुद गुरु परशुरामजी थे साथ
ब्राह्मण धर्म वालों को ही वहा मिलती थी शिक्षा
क्षत्रीय था इसीलिए उसको जुठ की लगी मनसा
(कोई रास्ता समझ न आ रहा था इसीलिए जुठ का सहारा लिया)
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जुठ से हाथ मिलाकर गुरुदेव का शिष्य बन गया था
गुज़र रहे थे दिन-रात वो खुद अपनी ज्ञाती भूल गया था
एक दिन ऐसा हुआ कि कभी न सोचा था
कैसा था समय उसके पीछे हाथ धोकर पडा था
परशुरामजी एक दिन कर्ण के पैर पर सो रहे थे
कर्ण के जिन्दगी के सारे पल बदल रहे थे
लोहि चूसने वाला कीड़ा आया और लोहि चूस रहा था
कर्ण के पैर से लोहि निकलकर दर्द उसको बढ़ा रहा था
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लोहि धीरे धीरे गुरुदेव के पास जा रहा था
फिर भी कर्ण ये दर्द सम्भाल रहा था
गुरुदेव जाग गए तभी कीड़ा निकाल दिया
गुस्से में गुरुदेव ने कर्ण को श्राप दे दिया
ब्राह्मण इतनी शहनशक्ति कभी नहीं कर सकता
कर्ण तुम क्षत्रीय हो इसीलिए तुम्हें कभी क्षमा नहीं कर सकता
युद्ध में तुम आखिरी वक़्त में सारी विद्या भूल जाओगे
इतना बड़ा पाप किया है कि तुम युद्ध हार जाओगे
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अकेला पड गया वो अब किसका सहारा बचा था
सारी शिक्षा प्राप्त कर के वो वीरयोद्धा बन गया था
दुर्योधन ने दिया सहारा तभी कौरवों में सामिल हो गया
दुर्योधन ने इतना फंसाया की वो पांडवों के विरुद्ध हो गया
दुर्योधन को तो कैसा डर क्युकी कर्ण उसके साथ था
कर्ण को कोई मार नहीं सकता क्युकी कवच उसके साथ था
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एक दिन अत्याचार की उस सभा में पांडव सब हार गए थे
भीम और अर्जुन भी क्या करते वो उनके दास बन गए थे
द्रौपदी की इज़्ज़त उतारकर वो मानव जात ही भूल गए थे
पांडवों को सारा राजपाठ छोड़कर वन मे जाना पडा
द्रौपदी की इज़्ज़त बचाकर कृष्ण को भाई का फर्ज निभाना पडा
वनवास पूरा होने पर भी दूसरी और युद्ध छाने वाला था
कैसा था समय पौत्र भी पितामह के विरुद्ध होने वाला था
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भाईओ-भाईओ का युद्ध था फिर भी माता कुंती चुप थी
द्रौपदी को भी लेना था बदला वो भी युद्ध की जिद्दी थी
कभी न हुआ ऐसा युद्ध होने वाला था
यही युद्ध सारे राज खोलने वाला था
सारी सेना और अस्त्र - शस्त्र तैयार हो ही गए थे
अब भगवान कृष्ण और सेना कहा जाएगी सब सोच रहे थे
भगवान कृष्ण के पास अर्जुन और दुर्योधन पंहुच गए थे
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अकल से पैदल था दुर्योधन जो मांग बेठा सेना
अर्जुन ने मांगा भगवान को अब उसे क्या लेना
युद्ध में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को भगवत गीता का पाठ पढ़ाया
वहा हो गया था समय बंध ऐसे ही अर्जुन को समझाया
अर्जुन को विराट रूप दिखाकर उसकी आँखें चकरा गई
थर थर कराने लगा अर्जुन और उसकी रूह कापने लग गई
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इतना सब समझाया फिर भी अर्जुन का मन बेचैन हो रहा था
पितामह पर वार करना था, इसीलिए उसका जी गभरा रहा था
पितामह ने दिया था वचन द्रौपदी को
सुहागन ही रहोगी में नहीं मारूंगा उनको
पितामह हो गए घायल तो अर्जुन माफी मांग रहा था
वो घायल तो हो गए फिर भी ईच्छामृत्यु का वरदान था
दर्द हो रहा था फिर भी महाभारत देखना था
भगवान कृष्ण की लीला का आनंद उठाना था
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जिनकी वज़ह से युद्ध हुआ वो खुश हो रहे थे
इसीलिए राजा धृतराष्ट्र अब सब भूकत रहे थे
शकुनी मामा बहुत पासे मे माहिर थे
मृत्यु आयी सामने तो माफी मांग रहे थे
दुशासन को भीम ने मार कर वचन पूरा कर दिया
द्रौपदी ने अपने बालों को खून से धो दिया
अब आए गुरु द्रोणाचार्य जो अर्जुन के गुरु थे
युधिष्टिर कभी न जुठ बोले थे इसीलिए धर्मराज कहलाते थे
धर्मराज के एक जुठने द्रोणाचार्य को मौत के घाट उतार दिए थे
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अब सामिल होने वाला था कर्ण युद्घ मे
कर्ण का कवच और कुंडल थे कान मे
इन्द्रदेव का पुत्र था अर्जुन तो उसको बचाने वाले थे
दानवीर होने की वज़ह से इन्द्रदेव कुछ मांगने वाले थे
भेष बदलकर आए इन्द्रदेव तो कुंडल कवच को मांग लिया
कर्ण दानवीर था इसीलिए सब उसने दे दिया
इन्द्रदेव ने खुश हो कर उसको एक अस्त्र दे दिया
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वो अस्त्र का प्रयोग करोगे तो सामने वाला वहीं मर जाएगा
कुंती माता ने सोचा कि कर्ण तो अब सबको मार जाएगा
एक रात को कर्ण से मिलकर कुंती माता ने सब सच बता दिया
सारी बाते सुनकर उसने कहाकि मुझे तो आपने यहाही हरा दिया
अर्जुन के सिवाय सारे पांडवों को छोड़ दूँगा
आपको वचन देकर ये वचन कभी न तोडुंगा
अर्जुन मरेगा फिर भी पाण्डव पांच ही रहेंगे
मे मरूंगा फिर भी पाण्डव पांच ही रहेंगे
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चारो को छोड़कर उसने अर्जुन पर निशाना लगाया
भीम का बेटा घटोत्कच युद्ध में शामिल हो गया
बचाना था अर्जुन को तो घटोत्कच बीच मे आ गया
कर्ण को वह अस्त्र एक ही बार उपयोग करना था
अर्जुन को बचाकर घटोत्कच को खुद मरना था
कर्ण ने सारी ताकत लगायी फिर भी वो हार गया
अंतिम वक़्त पे उसके रथ का पहिया फंस गया
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अर्जुन ने उसपर बाण चलाकर उसका वघ कर दिया
दानवीर,परिश्रमी,वचन न तोड़ना ये सभीने उसको अमर कर दिया
कर्ण भी महान है'उसकी गाथा भी महान है
पिता भी महान है' उनका तेज भी महान है
कर्ण की कहानी भी महान है ,उसका वचन भी महान है
पिता का प्रकाश भी महान है , उनका दान भी महान है
कर्ण सा कोई दानवीर नहीं
कर्ण सा कोई वीर योद्धा नहीं।
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