औरत तो औरत थी
औरत तो औरत थी
मैं क्या हुआ तुम क्या हुए !
औरत तो औरत थी
फिर आदमी क्या हुए !
मोमबत्ती जलाई जाएगी
रोशनी होगी और बुझ जाएगी
फिर से जलाई जाएगी
फिर रोशनी और बुझ जाएगी
एक औरत भी दूसरी औरत की न हुई
आदमी भी आदमी के न हुए
जिस्म नोच लिया गया
कौन कितना ढके बदन को
कुछ न मिला मिलने को तो कुछ भी
खुदी ही पूछता हूं तुम क्या हुए !
मैं औरत या लड़की होता
सोचता की मेरे अरमान मेरे न हुए
किसीका object बनता
फिर कहता खुदा तुम क्या हुए!
रूह पर जिस्म
जिस्म पर कपड़े
रिवाज रिवाज हुए
कुछ न हुआ होने को तो कुछ भी
एक चीख हुई थी
फिर अखबार अखबार हुए
चुप! तुम्हारी बहने तो सलामत है
तुम्हें क्या?
बंद हो तुम इस बात से क्या?
तुम सिर्फ अपनी बहनों के हुए
यानी तुम भी तुम क्या हुए
लिखना सब मेरा लिखने में रह जायेगा
मैं मर जाऊँगा और फिर कोई और लिखेगा
मुझे लोग समझते शायर या लेखक
लिखकर लगा की सारे खयाल
लिखने में हुए
सोचता मेरे जैसे भी सब क्या हुए!
शायर शायर न हुए
लेखक लेखक न हुए
औरत भी खुद को औरत देखती है
आदमी भी खुद को आदमी देखता है
फिर यह कहना सही है
की इंसान भी इंसान क्या हुए
पापा की परी क्या हुई!
मंज़िल क्या हुई सफर क्या हुए !
चिल्लाकर कहता हूं
लकड़ियां object नहीं होती
सभी की आंखें खुली है
हाथ खुले है
कानून अंधा है,
सरकार सहकार होनी चाहिए
पर सरकार सरदार बनी हुई है
क्या सच है क्या झूठ
सब अपने अपने हुए
"राज" सुन सारे राज राज हुए
मैं क्या हुआ तुम क्या हुए
औरत तो औरत थी
फिर ये आदमी क्या हुए
