घर में रोशनी होते हुए फिर भी
घर में रोशनी होते हुए फिर भी
आहिस्ता आहिस्ता खुदको खा लिया जाता है
बहोत देर बाद फिर खुदको होश में लाया जाता है
इस जिंदगी की भागदौड़ में
कभी मिलाया जाता है कभी तन्हा किया जाता है
घर में रोशनी होते हुए फिर भी
दिया जलाया जाता है हवाओ से बचाया जाता है
मैं गुरूर करता हूं और फिर देखता हूं
बिना पूछे मुझे मार दिया जाता है
जिसे सबकुछ पता हो उसे प्यार नहीं कहते
फिर भी कृष्ण-राधा को बार बार बीच मे लाया जाता है
माँ तुम शायद जुठ बोल रही थी
यहां पैसों से सबकुछ खरीदा बेचा जाता है
मैं देख रहा हूँ क्रिया कर्म सरकार का
पहले निवाला खिलाया जाता है मुँह बंद कर दिया जाता है
पाप के भागीदार न बने इसीलिए
पेड़ों को काँटा जाता है मंदिर बनाया जाता है
आप भक्त है तो भक्ति कीजिए
हम धंधा करेंगे हमे पता है यहां क्या किया जाता है
मुझे पता ही नहीं होता जन्मे हुए पर
मुझे हिन्दू बनाया जाता है मुस्लमान बनाया जाता है
मैं कोने मे जाकर रोता हूं , ए दोस्त
तू अंदर मर न जाए इसलिए तुझे कितनी बार बचाया जाता है
ये मोहब्बत इश्क हमे न सिखाइए
एक ओर घर जलाया जाता है दूसरी ओर घर बनाया जाता है
मैं तो अपना नाम भी रख सकता हूं खुदा पर
कृष्ण, अल्लाह, शिव आदि धर्मों में किया जाता है
ये धर्म-वर्म मुझे न सिखाइए
अपने धर्म से दूसरे धर्म को नीचा किया जाता है
तुम कितने भी अच्छे हो कितने भी बुरे हो !
बचपन से जवानी में,अंत बुढ़ापे में छोड़ दिया जाता है
दो लोग अपने आप को संभाल नहीं पाते और
बच्चे पैदा कर के खुद को सुदामा बनाया जाता है
जिन्हें कंही खुद से दूर छोड़ दिया जाता है
कुछ भी कहो बहोत देर बाद उन्हें आजाद किया जाता है
बड़ी बड़ी बाते करने से क्या होता है?
हम छोटे हो जाते है जब हमे काम दिया जाता है
कोई तो होगा जिसने बनाई होगी दुनिया
पागल खुदा नहीं मानते खुद को नास्तिक बनाया जाता है
ये जो तु बहोत डूबा हुआ है 'लफ्ज़कार'
पहले ख्वाब दिखाया जाता है फिर तोड़ दिया जाता है
