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Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

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रामयण२४;राम भरत मिलाप

रामयण२४;राम भरत मिलाप

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जल्दी जग गये राम थे उस दिन

सीता सुनाया उनको सपना

देखा मैंने अयोध्या से आया

शत्रुघ्न सहित भरत अपना |


सभी लोग उदास लग रहे

माताओं का है वेश बुरा

सुनकर प्रभु पड़ गए सोच में

नेत्रों में उनके जल था भरा |


इतने में उत्तर की और से

आकाश में धूल सी छाई थी

कौल भीलों ने आकर उनको

सारी खबर सुनाई थी |


एक ने कहा कि साथ में उनके

चतुरंगिणी सेना भारी 

लक्ष्मण ने क्रोध में बोला 

भरत, खैर नहीं अब तुम्हारी | 

|

राज्य को निष्कण्टक करने

बुरा विचार मन में लाया

छोडूंगा में आज न उसको

सबक सिखाकर मैं आया |


राम कहें फिर लक्ष्मण से कि

उसको ऐसा न समझो तुम

वो मुझको प्राणों से प्यारा

भरत मेरा भाई उत्तम |


भरत करें संकोच, कि राम

सम्मान करें या त्यागें आज

मंगल शकुन होने लगे जब

राम के निकट पहुंचे युवराज |


चरण चिन्ह देखे श्री राम के

रज को रखा मस्तक के पास

ह्रदय, नेत्रों से लगाया उसको 

पहुंचे, राम जहाँ करें निवास |


आश्रम में प्रवेश करते ही

मिट गया दुःख और दाह सारा

श्याम शरीर, वलकल वस्त्र 

राम को मुनि रूप में निहारा |


राम को दण्डवत करी भरत ने

लक्ष्मण ने पहचान लिया

पीठ थी राम की भरत की तरफ

लक्ष्मण ने बताया, जान लिया |


आधीर होकर प्रेम में उनके वो

उठे तो गिरे वस्त्र, तरकश

धनुष गिरा कहीं, वाण गिरे कहीं

ह्रदय से लगाया, प्रेम के वश |


भरत राम का प्रेम अगम्य है

मिलते ही नेत्र भर आए

प्यार मन में इतना आपार है

पर बोल कोई भी न पाए |


निषादराज ने विनती की तब

आयीं सब हैं माताएं

अयोध्यावासी मिलने को आतुर

मुनि वशिष्ठ भी हैं आए |


गुरु को दंडवत किया राम ने

निषादराज प्रणाम करें

राम सखा फिर जान के उनको

वशिष्ठ जी उनसे गले मिले |


माताएं सारी दुखी थीं

सबसे पहले मिले कैकई को

सांत्वना दी उनको, फिर मिले

सुमित्रा और कौशल्या को |


सभी माताएं और मुनि गन

चले राम के आश्रम में

सीता जी ,गुरु पत्नी अरुंधति

मिलन उनका हुआ उस वन में |


फिर सीता मिलीं माताओं से

सहम गयीं थी दशा देखकर

सब की सब थीं बहुत व्याकुल

प्रणाम किया उन्हें माथा टेक कर |


गुरु वशिष्ठ सब को बताएं

दशरथ अब थे नहीं रहे

रघुनाथ ने सुन दुःसह दुःख पाया

आँख से जल धारा बहे |


मन्दाकिनी में स्नान किया प्रभु

निर्जल व्रत उनके साथ रखें सब

शुद्ध हुए श्री रामचंद्र जी

क्रिया पिता की पूरी हुई जब |


दो दिन और बीत गए थे

राम कहें सब अयोध्या जाएं

भारत रात भर सोचें कैसे

राम को अयोध्या वापिस लाएं |


सब लोग इकट्ठा हुए सुबह को

कहें राम ही राज्य के लायक हैं

करें राज्याभिषेक राम का

सब के लिए ये सुखदायक हैं |


मुनि वशिष्ठ ने पूछा सबसे

अयोध्या राम को कैसे ले जाएं

किसी को सूझ रहा न कुछ है

भारत कहें मुनि आप बताएं |


मुनि बोले सूझी एक बात है

भरत शत्रुघ्न वन में जाएं

सीता जी के सहित ये दोनों

राम लक्ष्मण अयोध्या लौट आएं |


भारत कहें चौदह वर्ष क्या

पूरा जीवन वन में रहूँ मैं

इससे बढ़कर कोई सुख नहीं

 बात ये सच्चे मन से कहूँ मैं |


रामचंद्र के पास गए मुनि

सुनें विनती भरत करें जो

राम कहें संकोच करो न

भरत कहें जो, मैं मानूँ वो |


इंद्र फिर भयभीत हो गए

मन में राम की शरण गए वो

फिर सोचा राम तो भक्त के वश में

भरत जी का फिर स्मरण करें वो |


भारत ने राम से विनती की कि

राजतिलक की सामग्री लाए

सोचा है हम सब ने मिलकर

आप का राजतिलक हो जाए |


आप, लक्ष्मण और सीता जी

अयोध्या में फिर वापिस जाएं

मैं और मेरे साथ शत्रुघ्न

चौदह वर्ष वन में बिताएं |


सुनकर सहम गए थे राम जी

सकुचाए कुछ कह न पाए

उसी समय आश्रम में उनके

 जनक जी के दूत थे आए |


 









 







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