रामयण२४;राम भरत मिलाप
रामयण२४;राम भरत मिलाप
जल्दी जग गये राम थे उस दिन
सीता सुनाया उनको सपना
देखा मैंने अयोध्या से आया
शत्रुघ्न सहित भरत अपना |
सभी लोग उदास लग रहे
माताओं का है वेश बुरा
सुनकर प्रभु पड़ गए सोच में
नेत्रों में उनके जल था भरा |
इतने में उत्तर की और से
आकाश में धूल सी छाई थी
कौल भीलों ने आकर उनको
सारी खबर सुनाई थी |
एक ने कहा कि साथ में उनके
चतुरंगिणी सेना भारी
लक्ष्मण ने क्रोध में बोला
भरत, खैर नहीं अब तुम्हारी |
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राज्य को निष्कण्टक करने
बुरा विचार मन में लाया
छोडूंगा में आज न उसको
सबक सिखाकर मैं आया |
राम कहें फिर लक्ष्मण से कि
उसको ऐसा न समझो तुम
वो मुझको प्राणों से प्यारा
भरत मेरा भाई उत्तम |
भरत करें संकोच, कि राम
सम्मान करें या त्यागें आज
मंगल शकुन होने लगे जब
राम के निकट पहुंचे युवराज |
चरण चिन्ह देखे श्री राम के
रज को रखा मस्तक के पास
ह्रदय, नेत्रों से लगाया उसको
पहुंचे, राम जहाँ करें निवास |
आश्रम में प्रवेश करते ही
मिट गया दुःख और दाह सारा
श्याम शरीर, वलकल वस्त्र
राम को मुनि रूप में निहारा |
राम को दण्डवत करी भरत ने
लक्ष्मण ने पहचान लिया
पीठ थी राम की भरत की तरफ
लक्ष्मण ने बताया, जान लिया |
आधीर होकर प्रेम में उनके वो
उठे तो गिरे वस्त्र, तरकश
धनुष गिरा कहीं, वाण गिरे कहीं
ह्रदय से लगाया, प्रेम के वश |
भरत राम का प्रेम अगम्य है
मिलते ही नेत्र भर आए
प्यार मन में इतना आपार है
पर बोल कोई भी न पाए |
निषादराज ने विनती की तब
आयीं सब हैं माताएं
अयोध्यावासी मिलने को आतुर
मुनि वशिष्ठ भी हैं आए |
गुरु को दंडवत किया राम ने
निषादराज प्रणाम करें
राम सखा फिर जान के उनको
वशिष्ठ जी उनसे गले मिले |
माताएं सारी दुखी थीं
सबसे पहले मिले कैकई को
सांत्वना दी उनको, फिर मिले
सुमित्रा और कौशल्या को |
सभी माताएं और मुनि गन
चले राम के आश्रम में
सीता जी ,गुरु पत्नी अरुंधति
मिलन उनका हुआ उस वन में |
फिर सीता मिलीं माताओं से
सहम गयीं थी दशा देखकर
सब की सब थीं बहुत व्याकुल
प्रणाम किया उन्हें माथा टेक कर |
गुरु वशिष्ठ सब को बताएं
दशरथ अब थे नहीं रहे
रघुनाथ ने सुन दुःसह दुःख पाया
आँख से जल धारा बहे |
मन्दाकिनी में स्नान किया प्रभु
निर्जल व्रत उनके साथ रखें सब
शुद्ध हुए श्री रामचंद्र जी
क्रिया पिता की पूरी हुई जब |
दो दिन और बीत गए थे
राम कहें सब अयोध्या जाएं
भारत रात भर सोचें कैसे
राम को अयोध्या वापिस लाएं |
सब लोग इकट्ठा हुए सुबह को
कहें राम ही राज्य के लायक हैं
करें राज्याभिषेक राम का
सब के लिए ये सुखदायक हैं |
मुनि वशिष्ठ ने पूछा सबसे
अयोध्या राम को कैसे ले जाएं
किसी को सूझ रहा न कुछ है
भारत कहें मुनि आप बताएं |
मुनि बोले सूझी एक बात है
भरत शत्रुघ्न वन में जाएं
सीता जी के सहित ये दोनों
राम लक्ष्मण अयोध्या लौट आएं |
भारत कहें चौदह वर्ष क्या
पूरा जीवन वन में रहूँ मैं
इससे बढ़कर कोई सुख नहीं
बात ये सच्चे मन से कहूँ मैं |
रामचंद्र के पास गए मुनि
सुनें विनती भरत करें जो
राम कहें संकोच करो न
भरत कहें जो, मैं मानूँ वो |
इंद्र फिर भयभीत हो गए
मन में राम की शरण गए वो
फिर सोचा राम तो भक्त के वश में
भरत जी का फिर स्मरण करें वो |
भारत ने राम से विनती की कि
राजतिलक की सामग्री लाए
सोचा है हम सब ने मिलकर
आप का राजतिलक हो जाए |
आप, लक्ष्मण और सीता जी
अयोध्या में फिर वापिस जाएं
मैं और मेरे साथ शत्रुघ्न
चौदह वर्ष वन में बिताएं |
सुनकर सहम गए थे राम जी
सकुचाए कुछ कह न पाए
उसी समय आश्रम में उनके
जनक जी के दूत थे आए |