श्रीमद्भागवत -१६९ बलि का बांधा जाना
श्रीमद्भागवत -१६९ बलि का बांधा जाना
श्री शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित
नखचन्द्र की छटा से चरण की
सत्यलोक की आभा फीकी पड़ी
प्रकाश में डूब गए ब्रह्मा जी भी।
ब्रह्मा जी ने अगवानी की चरणों की
साथ में ऋषि, ब्रह्मचारी, योगी
वेद, उपवेद और महात्माओं ने
वंदना की चरणकमलों की।
ब्रह्मा जी ने प्रक्षालन किया
स्वयं ही प्रभु के चरण का
भगवान की स्तुति की उन्होंने
प्रेम भक्ति से की थी पूजा।
हे परीक्षित, ब्रह्मा के कमंडलु से
पांव पखारने के लिए निकला जो जल था
भगवान के पांव से पवित्र हो
गंगा के रूप में परिणत हो गया।
आकाश मार्ग से पृथ्वी पर गिरकर
तीनों लोकों को पवित्र करे वो
दैत्य सभी वहां सोच में पड़ गए
भगवान ने छीनी पृथ्वी, देखा ये तो।
सोचें दैत्य स्वामी बलि तो
इस समय दीक्षित हैं यज्ञ में
वो तो अब कुछ करेंगे नहीं
चिढ़कर आपस में ही कहने लगे।
'' अरे, यह ब्राह्मण नहीं है
विष्णु है ये, मायावी सबसे बड़ा
ब्राह्मण के रूप में छिपकर
काम बना रहा देवताओं का।
पहले तो इसने याचना की
फिर हमारा सर्वस्व हरण किया
शत्रु को मार डालें, ये धर्म है
ऐसी अवस्था में हमारा ''।
ये सोच बलि के अनुचर असुरों ने
शस्त्र उठा लिए थे अपने
और वो सब टूट पड़े थे
वामन भगवान को मारने के लिए।
विष्णु भगवान के पार्षदों ने भी
हंसकर अपने शस्त्र उठा लिए
रोक लिया था उन असुरों को
सेना का उनकी मर्दन करने लगे।
राजा बलि ने जब ये देखा कि
मेरे सैनिक पार्षदों से लड़ रहे
शुक्राचार्य का शाप स्मरण कर
रोक लिया उनको लड़ने से।
उन्होंने कहा, भाइयों लड़ो मत
अनुकूल नहीं समय हमारे कार्य के
काल भगवान ही समर्थ हैं
समस्त प्राणियों के सुख और दुःख के।
पहले थे हमारी उन्नति और
देवताओं की अवनति के कारण वे
अब वो ही हमारी अवनति और
देवताओं की उन्नति के कारण हो रहे।
बल, मंत्री, बुद्धि, दुर्ग, मन्त्र आदि
इनमें से किसी भी साधन से
अथवा इन सब के द्वारा भी
काल पर विजय न प्राप्त कर सकते।
दैव तुम्हारे अनुकूल था जब
जीता तुमने इन पार्षदों को
देखो पर अब ये सिंहनाद कर रहे
युद्ध में जीतकर तुमको।
हमारे अनुकूल हो जाये दैव जब
हम जीत लेंगे इन्हें भी
अनुकूल हो कार्य सिद्धि के हमारी
प्रतीक्षा करो तुम उस समय की।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
सुनकर बातें स्वामी की अपने
दैत्यसेनापति वो सारे
तभी रसातल में चले गए।
उनके जाने के बाद भगवान के
हृदय की बात जान गरुड़ ने
राजा बलि को था बाँध लिया
बांधा उन्हें पाशों में वरुण के।
अश्वमेध यज्ञ में सोमपान
होने वाला था उस दिन बलि के
बुद्धि उनकी निश्चयात्मक थी
यद्यपि पाशों में बंधे हुए थे।
और गान कर रहे थे सभी
उदार यश का लोग वहां उनके
ये बात कही बलि से
हे परीक्षित, उस समय भगवान ने।
कहा असुर, मुझे पृथ्वी के
तीन पग दिए थे तुमने
मैंने दो पग में त्रिलोकी नाप ली
तीसरा पग पूरा कैसे करोगे।
सूर्य की गर्मी पहुंचे जहाँ तक
नक्षत्रों की किरणें पहुंचतीं
बादल जहाँ तक जल बरसाते हैं
वो पृथ्वी तुम्हारे अधिकार में थी।
तुम्हारे देखते देखते ही मैंने
भूलोक नाप लिया एक पैर से
शरीर से आकाश, दिशाएं
स्वर्ग लोक दूसरे पैर से।
तुम्हारा सब कुछ अब मेरा हो गया
फिर भी तुमने जो प्रतिज्ञा की थी
नर्क में तुमको जाना होगा
क्योंकि वो अभी पूरी न हुई।
इस बात का घमंड था तुम्हें कि
धनी हूँ मैं बहुत बड़ा
तुमने मुझे धोखा दिया है
देने की करकर प्रतिज्ञा।
अब तुम कुछ वर्षों तक
इस झूठ का फल भोगोगे
इस पाप का फल नरक है
प्रवेश करो तुम अब नरक में।