किधर चला हूँ मैं
किधर चला हूँ मैं
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किधर चला हूँ मैं ?
ना कभी सवाल खुद से,
ना कोई जवाब गहरा
ना मुस्कुराने का मन है,
ना रोने की कोई वजह
किधर चला हूँ मैं ?
शायद कुछ छूट सा रहा है,
शायद मुझे पकड़ना नही
दीमाग जैसे बंध हूँ आ,
शायद मैं ? थोड़ा कमजोर हूँ ,
शायद मुझे अपनी ताकत याद नहीं
किधर चला हूँ मैं ?
बस अब रुक जाव,
थोड़ा सा ठहर जाव
ये रास्ते कुछ अंजान है,
हम ना भगवान है,
नाहि हम महान है
कुछ खुद को देख लेने दो,
कुछ पुराने घाव खुरदने दो,
क्यूंकि दुश्मन मेरे अभी भी हजार है
ना मैं ? कभी हार सकता हूँ,
ना हारने के बारे मैं ? सोच सकता हूँ,
मैं ? जो चाहे वो कर सकता हूँ ,
क्योंकि हम तो इंसान है
होंसले थोड़े ध्वस्त है,
बाजुए अभी मस्त है
टूट गया तो क्या हूँ आ,
जुड़जा तुजमे अभी रक्त है,
समय तेरा ही था तेरा ही रहेगा,
तू ये कमजोरी अब कब तक सहेगा
बारिश की तरह बरसा दे खुद को,
और पानी की तरह रास्ता बना
पूछो सवाल अपने वजूद से,
यूँ ही किधर चला हूँ में ?