समझ
समझ
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कौन समझदार ?
पंछी या इंसान..... ?
परिंदे भी जब उड़ना सीखते है तो
गिरते है और गिरकर सम्भलते हैं।
सीख जाते हैं जब उड़ना तो
उड़ान ऊँची भरते हैं।
डरते नहीं फ़िर किसी आंधी या तूफ़ान से
बस उड़ते हैं और उड़ते ही चले जाते हैं।
टूटते है पंख तेज हवा में इनके भी
पर ये नीचे गिरे पंखों की फ़िक्र नहीं करते हैं।
तिनका तिनका लाकर घर ये अपना बनाते हैं
फिर बड़े प्यार से किसी पेड़ की
डाल पर उसे सजाते हैं।
चुन चुन कर दाना लाते हैं
फ़िर खुद ही छोटे पंछी को
बड़े चाव से खिलाते हैं।
करते हैं सब कुछ ये भी अपने परिवार के लिए
पर कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं।
धूप, छाँव, बारिश, तुफ़ाँ
हर मुसीबत से ये भी टकराते हैं
पर देख सामने मुश्किलों को
कभी हिम्मत नही हारते हैं।
खुश रहते हैं अपनी छोटी सी
घोसले वाली दुनिया में
फिर क्यों इंसान इन्हें भी पिंजरे में
बन्द करना चाहते हैं।
तोड़ देते हैं लोग पत्थर मार घर इनका
फिर खुद के घर तुफानों में टूटने पर
क्यों इतना चिल्लाते है।
समझ उनमें भी है हमारी तरह
संघर्ष करते है वो भी हर जीव की तरह।
सोना, खाना, घर बनाना
यही काम है इस धरती पर हर जीव का।
फिर क्या है अंतर हम इंसानों में ?
कौन हैं बहतर उसकी रचना में ?
कौन है समझदार ?
पंछी या इंसान.... ?