STORYMIRROR

garima agarwal

Classics Inspirational

4  

garima agarwal

Classics Inspirational

प्रकर्ति और मानव

प्रकर्ति और मानव

1 min
279

देखा जो मैंने खिलता हुआ गुड़हल

खिल उठा मेरा भी मन। 

देख कर इसका पीला रंग

मन में उठी एक नई तरंग।


पूछा मैंने खुद के ही मन से

की क्यों होता है तो उदास ? 

इस प्रकर्ति की तरह ही

क्यों नही है तुझे खुद पर नाज़ ?

  

धूप होया छाँव, दिन हो या रात

खिलता है ये बिन किसी बात। 

भौरें, तितली सब पीते हैं

 इनका रस, 


पर नहीं छोड़ता ये अपना स्वभाव।

तेरा और इसका एक ही तो है रचियता, 

दोनों में ही दिए हैं उसमें प्राण। 

रहने के लिए इस धरती पर, 

दोनों को ही चाहिए एक दूसरे का साथ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics