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garima agarwal

Abstract

4  

garima agarwal

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मुस्कुराहट

मुस्कुराहट

2 mins
220


न पूछों तुम मेरी मुस्कुराहट का राज़..... 

मैंने दर्द में भी मुस्कुराना सीखा है। 

दुश्मन हो या दोस्त, 

सबसे मुस्कुराकर मिलना सीखा है मैंने। 

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

अदा नहीं ये आदत है मेरी, 

दर्द को दिल में छुपा होठों पर मुस्कान लाना सिखा है मैंने। 

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

मंज़िलो की बात तुम न करो मुझसे, 

मंजिल को पा कर भी लौट आना सिखा है मैंने। 

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

ख़ामोश रह कर, सबकी सुनना और

सबकी खुशियों के लिए खुद की ख्वाहिशों को भूल जाना सिखा है मैंने। 

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

खुद के आँसू छुपाकर दूसरों के आँसू पूछे है मैंने, 

खुद के काँधे को दूसरों का सहारा बनाना सिखा है मैंने।

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

प्यार और मोह में अंतर करना सिखा है मैंने, 

त्याग और विश्वास की परीक्षा देना सिखा है मैंने।

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

रिश्तों को दिल और जान से निभाना सिखा है मैंने, 

बिना किसी शर्त और माँग के सबके लिए सब कर जाना सिखा है मैंने। 

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

ज़मी पर रह कर बादलों की उचाईयों को जाना है मैंने, 

अंहकार से दूर और स्वाभिमान से जीना सिखा है मैंने। 

दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 

नहीं सिखा तो खुद के लिए लड़ना, 

किसी को गिरा कर खुद आगे बढ़ना। 

किसी को दर्द देकर खुद मुस्कुराना, 

मतलब से बात करना और फ़िर भूल जाना।। 

नहीं सिखा किसी को दर्द देना मैंने। 

पर दर्द में भी मुस्कुराना सिखा है मैंने।। 



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