राष्ट्रकवि दिनकर
राष्ट्रकवि दिनकर
साहित्य
जगत के "अनल" कवि का,
अधैर्य जब चक्रवात पाता है ।
तब "दिनकर "भी "दिनकर" से,
दीप्तिमान हो जाता है।
"ओज" कवि "रश्मिरथी "पर,
जब-जब हुंकार लगाता है ।
"आत्मा की आँखें "
कैसे ना खुलेगी ।
पत्थर भी पानी हो जाता है।
साहित्य
जगत के "अनल "कवि का।
"भारतीय संस्कृति के चार अध्याय" रच कर ,
भारत का विश्व में नाम किया।
"कुरुक्षेत्र "रच कर आधुनिक
गीता का निर्माण किया।
"शुद्ध कविता की खोज" में निकला।
"उजली आग का स्वाद" चखा।
रेणुका ,उर्वशी ,रसवंती ,
यशोधरा का द्वंद गीत लिखा।
सपना देख के
"सूरज के विवाह" का।
"हारे को हरी नाम "भज कर
अंतिम इतिहास रचा।
कैसे भूल सकता।
साहित्य दिनकर को,
उसने जो इतिहास रचा।
"अर्धनारीश्वर "की सार्थकता को,
साहित्य वन में छोड़ चला।
साहित्य भूला नहीं सकता।
ज्ञान,
पदमभूषण ,
भूदेव के अधिकारी को।
सिमरिया की माटी को,
उस "दिनकर "
काव्य अवतारी को।