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Sweta Parekh

Classics

4  

Sweta Parekh

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राही की ये राह!

राही की ये राह!

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राही राह बदल देता है राहे यु मुड़ती नहीं,

राही संग छोड़ देता, राह यु छूटती नहीं,

राही मन बदल देता है, राहे यु बदलती नहीं !


राही की राह है ये, मन का विश्वास है ये,

राही की जित है जो दिल के जस्बात है ये,

राही यु चलता ही जाता, मुड़ता ना मोड़ा जाता ! 


राही यु गिरता पड़ता, उठके ये फिर से है चलता,

ज़िन्दी की राह पे दौर यु चलता ही रहेता,

राही बस चहेरा बदलता, फिर से कारवा ये सजता,

लोग जुड़ते ही जाते, युग युग परान्त यु चलता रहेता !


एक पल के अनहोनी से फिर ये अहसास बदलता,

फिर ये राही अपनी राहे ढूढंता,

देखता, सोचता, सुनता और फिर दूसरे ही

पल अपने उसी अहसास से जुड़ता,


अनहोनी को एक बुरा सपना सोच भुलाता,

युही हर घटना घटती,

युही संसार ये चलता,

अधर्म और धर्म यहाँ यूँ ही पलता,


कृष्णा के आने की आश में यूँ ही ये जहान है बिलखता,

राही राह बदल देता है राहें यूँ मुड़ती नहीं !


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