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chandraprabha kumar

Classics

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chandraprabha kumar

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सहस्रदल कमल

सहस्रदल कमल

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  फूलों का सिरताज कमल है,

   राजाधिराज यह कमल है,

  सहस्रदल युक्त कमल है,

  भारत का ये राष्ट्र कमल है।


  भगवान के श्री अंगों की शोभा ,

  पूरी करने का यह उपमान्। 

 सरसिज लोचन बाहु बिसाला,

  नील पीत जलजाभ सरीरा। 


  तरह तरह के रंग रूप ,

  विविधता की छटा कमल है,

  कर कंज ,पद कंजारुण है,

  राजीवनयन कंज मुख है। 


  सरस्वती श्वेतपद्मासना हैं ,

  देवी लक्ष्मी को ये प्रिय पद्म हैं।

 श्री विष्णु जी भी कमलनाभ हैं,

  तो ब्रह्मा जी भी कमलासन हैं। 


  ब्रह्मरन्ध्र में यह कमल है, 

  योगी जनों का ये पद्मासन है,

  नलिनी दल गत जल सम, 

  जीवन अतिशय चपल है। 


 तामरस अरुणाभ कमल,

 कुवलय इन्दीवर नील हैं,

 पंकरुह पंकज हैं फिर भी

  निर्मल हैं अमल धवल हैं। 


 पद्म सरोवर पद्माकर है,

  उससे शोभित सर का नीर,

  गौरवमय है यह गंभीर,

  राघव के चरणाम्बुज धीर।


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