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दिनेश कुशभुवनपुरी

Romance Classics

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दिनेश कुशभुवनपुरी

Romance Classics

मौसम के पाँव

मौसम के पाँव

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बादल भी घूम रहा,

सावन के दाँव में।

पुरनम हवाएँ चलीं,

फूलों की छाँव में॥


बूँद पंख खोल चली,

मिट्टी से मिलने।

रिमझिम के प्रेम तले,

धूप लगी खिलने॥


कीचड़ ना लग जाये,

मौसम के पाँव में।


तरुवर भी झूम झूम,

लगे गुनगुनाने।

बलखाती घासें भी,

लगीं खिलखिलाने।


हरियाली नाच उठी,

भौरों के गाँव में।


दादुर का टर्र टर्र,

झींगुर का झनझन।

चपला की चंचलता,

मेघों का गरजन।


पानी की रेल चली,

पनघट की ठाँव में।


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