गीतिका- रिपुदमन
गीतिका- रिपुदमन
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दुश्मनों के बेधड़क ललकार को।
हम चलें अब धार दें तलवार को॥
शांति से चुपचाप हम तब तक रहें।
शत्रु यदि छेड़े नहीं अंगार को॥
आत्मरक्षा या कुकर्मों का दमन।
इसलिए ही चाहिए हथियार को॥
दुष्ट यदि छोड़ें नहीं अब दुष्टता।
रिपुदमन अब चाहिए संहार को॥
वे जहर घोलें तो' चुप सारे रहें।
भूल जाते सर्प के फुफकार को॥
बीन ले लेकर संपेरा जब चले।
नाग तब निकलें डँसे संसार को॥
शांति का हमको पढ़ाते पाठ सब।
और वे घिसते रहे औजार को॥
हो चुकीं बातें बहुत ही शांति की।
अब बुला लें रुद्र के अवतार को॥
