बहुत खोया बहुत पाया
बहुत खोया बहुत पाया
नदी की धार में चलकर निकलना आ गया हमको।
समंदर के लहर में भी ठहरना आ गया हमको॥
थपेड़े जिंदगी में हर कदम झेले यहाँ हमने।
हवा में भी सलीके से थिरकना आ गया हमको॥
बुझे मन से नहीं जीना जमाने के झमेलों में।
किसी भी हाल में अब तो चहकना आ गया हमको॥
बहुत खोया बहुत पाया अभी तक जिंदगी में मैं।
कहाँ कब क्या किया जाए परखना आ गया हमको॥
नहीं सँग सँग चले मेरे अगर अब साथ कोई भी।
अकेले ही किसी पथ पर टहलना आ गया हमको॥
बहारों बात सुन लो ये न इतराओ स्वयं पर तुम।
तुम्हारे बिन चमन में अब महकना आ गया हमको॥
किसी की याद में तड़पूं गवारा है नहीं सुनिए।
हुई नादानियों से अब निखरना आ गया हमको॥
घटाएँ छा रही काली बिना बरसात जीवन में।
बिना पग डगमगाए ही निपटना आ गया हमको॥
