कहाँ गए वो झूले जहाँ मैं रोज़ झूला करती थी। कहाँ गए वो झूले जहाँ मैं रोज़ झूला करती थी।
बहुत हुआ बहुत हुआ घुन के साथ पिसते रहे रोटी के लिए गूँधते रहे बहुत हुआ बहुत हुआ घुन के साथ पिसते रहे रोटी के लिए गूँधते रहे