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Mahak Garg

Abstract Children Stories

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Mahak Garg

Abstract Children Stories

प्रिय पार्क

प्रिय पार्क

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प्रिय पार्क!

न जाने तुम कहाँ खो गए हो ?

क्या दुनिया की भीड़ में कहीं सो गए हो ?

क्या भूल गए वो दिन,

जब रोज़ होती थी मुलाक़ातें।

क्या भूल गए वो शाम,

जब हम रोज़ थे टहलने आते।

वो पेड़ के नीचे हुई बातें,

वो दोस्तों संग हँसी-ठिठोली की यादें।

कहाँ गए वो झूले

जहाँ मैं रोज़ झूला करती थी।

कहाँ गया वो पार्क

जहाँ मैं अपने सपने बुना करती थी ।

माना ! के ग़लती हमारी हैं,

जो तुम्हें भूल गए

ये क्षति हमारी है।

मगर तुम मुझसे यूं न रूठ जाना।

ऐ मेरे प्रिय पार्क,

एक बार फ़िर से तो लौट आना।


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