दरवाज़े के उस पार
दरवाज़े के उस पार
दरवाज़े के उस पार
जाने के लिए
बस एक कदम की दूरी है
मैं जाना तो चाहती हूँ
मगर कुछ है
जो रोक रहा है
जो मुझे पीछे धकेल रहा है
डर है
कहीं दरवाज़ा गलत तो नहीं
घबराहट है
कहीं फैसला गलत तो नहीं!
न जाने क्या है उस पार
क्या कोई बेडियां हैं
जो बांध देगी मुझे
किसी बंधन में
जो छीन लेगी मेरी खुशियां
या है कोई रंगीन दुनिया
जो लगा लेगी गले मुझे
और गाएंगी
आज़ादी के गीत बार-बार !
एक असमंजस है मन में
क्या खोल दूं ये दरवाज़ा
और अपना लू
उस अतिथि को
कहीं कोई जिंदगी तबाह तो न कर जाएगा
या अनसुना कर दूं
उस दस्तक को,
कहीं कोई मौका तो न चला जाएगा!