गेहूँ की बात
गेहूँ की बात
हमने सुना है
क्या तुमने भी सुना है
खेतों में बात करते गेहूँ को
आज सुबह सुबह
गेहूँ की बालियों को
हवा की लहरों पर झूमते
रुन झुन स्वर में
एक दूजे से कहते
साफ साफ सुना
अपने पेट को अब सीना है
गैरों के लिए बहुत जिया
अपने लिए अब जिना है
अब तलक हँसिया से कटते रहे
गलत लोगों के बीच बँटते रहे
हमें अब हँसिया बनना है
सबसे यही कहना है
अलग अलग रस्सी से बंधकर
औरों का बोझ नहीं बनना है
चलकर मंजिल तक पहुँचना है
मात्र ताल और केवाल में नहीं
परती और टाँड़ पर भी उगना है
फिर भी
सबको एक बराबर समझना है
बहुत हुआ बहुत हुआ
घुन के साथ पिसते रहे
रोटी के लिए गूँधते रहे
अब हम भी
सरसों की तरह टहलना चाहते हैं
चावल की तरह उबलना चाहते हैं
बहुत देखा
बैलों के खुर
हल के फाल
अब हम भी
म्यूजिकल चेयर देखना चाहते हैं
खुश हुआ मैं जानकर
गेहूं कुछ कहना चाहते हैं
गेहूँ कुछ बनना चाहते हैं
गेहूँ अब टहलना चाहते हैं
गेहूँ अब उबलना चाहते हैं
शायद वक्त आ गया
स्पष्ट निर्णय का
करने या मरने का
हर अनाजों के लिए
गेहूँ के हमनसीबों के लिए !!