"पतझड़ "
"पतझड़ "
ज़िन्दगी का तो यही लेखा जोखा,
आज बसंत तो कल पतझड़ होगा,
तैयार रहना हर विषम दौर स्थिति में..
दौड़ता वक़्त कब थमे नहीं भरोसा।।
इस ऋतु में पेड़ों से पत्ते झड़ जायेंगे,
फिर नयी शाखाएं नये कोपले फुटेंगे,
ज़िन्दगी की भी यही अधूरी दास्ताँ हैं,
आज ग़म हैं तो कल खुशी के पल आएंगे।।
कभी पतझड़ जैसे बुरी आदतें त्यागो,
कभी बिगड़ती बात को पत्तों जैसे ढाँप दो,
ज़िन्दगी सुख-दुख, परेशानियों का संगम हैं.
नयी उम्मीद में बीती बातों को भुला आगे बढ़ो।
