प्रेम का एक पवित्र घूंट
प्रेम का एक पवित्र घूंट
शीत ऋतु के कोमल हाथों में, पसरा होता है सन्नाटा,
बर्फीली बातों के कैनवास पे चलता कोई ठंडा ब्रश,
चमचमाती सफेदी दिखाता हुआ एक सफेद कपड़ा,
मूक हवाओं को भी समेट लेता है अपने में... जाने कैसे!
चाँद की अलौकिक चमक के नीचे,
जब प्रकृति फुसफुसाती है लोरी,
क्रिस्टलों के साथ आओ हम-तुम नृत्य करें,
एक दिव्य नृत्य, हो जो तुलना से परे।
पाले को चूमती किसी बूढ़े पेड़ की शाखाएँ,
चांदी की प्राचीन कलाकृति कह दो जिन्हें तुम,
उन क्षणभंगुर निशानों में,
क्षणिक सा प्रेम-अनुग्रह कर दो मुझ पर।
शीतल आलिंगन में लिपटे हुए परिदृश्य,
को देखते हुए ही किसी पवित्र स्थान पर,
गर्म होते आत्मिक प्रेम का एक पवित्र घूंट भर लें,
इस ऋतु का सौंदर्य एक उत्कृष्ट कृति है - सात्विक प्रेम की।
बस महसूस करने की देरी है।
