भाव विभोर
भाव विभोर
निज भवन में राम बिराजे,
मधुर गीत हर उर में बाजे
नींद भूख नहि प्यास सताए
भाव विभोर हो मन हरषाए
राम नाम शुभ हृदय गाए
भाव सिंधु में फिर उतराए
दर्शन सौख्य लोचन शुभ पाते
दीर्घ काल की प्यास बुझाते
अतिशय सुंदर मूर्ति राजती
अनुपम हर हृदय विराजती
भक्त असंख्य निर्निमिष देखते
अघ अशेष सतत सोखते
राम रसायन चित्त धारते
पथ कर्तव्य से नहीं हारते
भव सिंधु से राम तारते
तन मन धन प्रभु चरण वारते॥
